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मुनि प्रेमविजयनी टीप
__ संपा. मुनि भुवनचन्द्र जगद्गुरु विजयहीरसूरीश्वरजीना समुदायना मुनि प्रेमविजयजीए स्वीकारेला नियमोनी सूचिनी आ प्रति तेमना पोताना उपयोगार्थे लखायेली जणाय छे । खंभातना श्री पार्श्वचन्द्रगच्छ संघ हस्तकना भंडारनी आ प्रति (विभाग २, प्रत क्र. ९०९) लाल अने काळी शाहीथी लखाई छ । अक्षरो सुंदर अने मोट छ । एक पृष्ठमां ११ पंक्ति तथा एक पंक्तिमां सरेराश ३५ अक्षरो छे. पांच पत्रनी आ प्रति सारी स्थितिमा छ।
जैन श्रमणोए पालन करवाना पांच महाव्रत तथा अन्य आनुषांगिक नियमो उपरांतना स्वेच्छाए धारण करेला नियमोनी आ सूचि छ । संयमी जीवन कई सीमा सुधी जीवी शकाय तेनु निदर्शन तो आमां मळे छे ज, परंतु प्रस्तुत नियमावलि मात्र कष्टमय जीवन जीववाना जड प्रयासरूप नथी; आंतरिक जागृति, नम्रता, सहजता तथा व्यावहारिक दृष्टिकोणनां पण आमां दर्शन थाय छे । अपवादोनुं आयोजन खास ध्यान खेंचे छ । भाषाकीय दृष्टिए पण आ कृति उपयोगी बनशे एवी आशा छ ।
.८०। परमगुरु विजयमान भट्टारिक श्री श्री... श्री हीरविजयसूरिगुरुभ्यो नमः । मुनि प्रेमविजयनी टीप लिखिइ छइ । जावजीवना अभिग्रह जाणिवा ।
कलपडो, कांबली, संथारिउं, चोलपट्ट - एतलइ एक बोल । १ पात्रां त्रिण, पडला पांच, रताणां त्रिण, झोली बदू-ए बोल बीजे । २
जावजीव औषधनुं पंचखाण, अथवा बइ आंखिनइ हेति, अथवा सादिकनइ डंसइ, अथवा लू लागइ मोकलउ; अथवा प्रहारपाटूई मोकलउ-ए बोल त्रीजउ । ३
विगइ पांच- पचखाण-ए चउथउ बोल । ४
नीलो नालिकेर १, गोटो २, टोपरां ३, खारीक ४, खजूर ५, द्राक्ष ६, लवंग ७, एलची ८, सुंठि ९, मिरी १०, पीपरि ११ - ए समस्तनुं पचक्खाण-ए बोल पांचमो । ५
खीरनुं पचखाण अनइ निवीनुं दूधनुं पचखाण-ए बोल छठउ । ६
धाननुं सूकउं सालणउं मोकलूं, अवर समस्त नीलवण अनइ समस्त सूकवणए समस्त खाएं सालणउं आदि देईनइ पचखाण-ए बोल सातमो । ७
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