Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ [48] सिरि-जिणपहसूरि-रइड वयरसामि-चरिउ नमवि जिणवर निज्जियाणंग, छत्तीस-गुण-गण-पवर- सुगुरु-चलण पणमवि सुभाविहि, धम्मु जु जीवह दय-सहिउ सयल-सुक्ख-दायगु सहाविहि । चउविह संघ वि सुर-महिओ, मुत्ति-निअंबिणि-हारु । वयरसामि-सुचरिउ भणिसु, भवियण-मंगलकारु ॥१॥ अत्थि इह नयर-वरु तुंबवणु अवयंती-देस-मज्झारि । तहिं वसइ धणगिरि इभ्यपुत्तु तसु सुनंदा वर-नारि ॥२॥ तुम्हि निसुणउ भविक-जन, वयरसामि-चरित्तु ॥ जसु अट्ठावइ देव-भवे, गोअमि दिन्नु समत्तु ॥ तुम्हि० [वस्तु] अन्न-दिवसिण नेह-पडिबद्ध, धणगिरि निय-पिअयम भणिय मुज्झ चित्तु भोग अमिल्हइ, पेक्खेविणु आरंभ घणु, निरय-तिरिय बहु दुक्ख सल्लइ । एउ निसुणेविणु वय-गहणि, मई सुंदरि मोकल्लि । जर-रक्खसि निय-बलि सहिअ, आवइ अज्जु कि कल्लि ॥३॥ तुम्हि० कर जोडवि सुनंदा भणए, आसा-लुद्धि अन्नाह । पुत्त-जम्मु पडखेसु प्रिय, सामिअ म करि अणाह ॥४॥ तुम्हि० पढम-जोवणि तासु वर-घरणि, गय-गामिणि ससहर-वयणि रूववंतु निअ-तणु वहंतीअ । मिग-लोअण पिअ-वयणि पिउ भणइ बालु करुणं रुअंतीअ । अग्गइ बंधवि वउ लइउ, सामीअ तउं म-न लेसु । निअ-कुल-कमला-केलि-करु, पुत्त-जम्मु पडखेसु ||५|| तुम्हि० जणणीअ कुक्षि-सर-रायहंसो, देवलोगाउ ऊवन्नु । तउ धणगिरि सुकलावि दीख, सीहगिरि-पासि पवन्नु ॥६॥ तुम्हि० सुनंदा पसवए पुत्त-रयणु, रूव-लक्खण-संजुत्तु । सहीअ भणइ जइ जणकु हुंतु, जम्मूस्सवु कारिंतु ॥७॥ तुम्हि० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122