Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 54
________________ [ 49] सुणवि एउ वयणु जसु जम्म-काले जाईसरणु संपत्तु । पिय-पासि लेसु वउ धरीउ चित्त माइ लूणइ(?) रोअंतु ।।८।। हालरू हालरू बालपणे संजमु जिण धरिउ सुनंदा-नंदणु धणगिरि-कुल-मंडणु ॥ हालरू० वस्तु गोअर-चरी चलिउ धणगिरि, अज्ज-समिति संजुत्तु । सउणि जाणीउ भणइ सीहगिरि लेउ तम्हि सचित्तु अचित्तु ॥९।। हालरू० पत्त सुनंदा-भवण-मज्झम्मि, रोअंतउ उच्छंगि ठिउ, लेवि पुत्तु तसु प्रिय समप्पइ । करवि सक्खि नर-नारि-गण, हास-खिड्डि धणगिरि सु घिप्पइ । पिय-पासि आवीउ मुणवि, हसइ सु पमुइउ बालु ॥ संजम-सिरि-उक्कंठ-मणु, मोहराय-खयगालु ॥ १० ॥ हालरू० हासई पुत्तु आपेविणु, देइ सा मुणिवर दाणु । साहु जं गहिउ तं मुअइं न हु, अमुणंतीअ निहाणु ॥११॥ हालरू० लेवि मुणिवर पुत्त-वर-रयणु, संपत्त सुह-गुरु-चलणि, भारु भणवि गुरु-हत्थि धारीउ । आणिउ इह किं वज्ज-वरु, तासु, रूवु लक्खणु निहालीउ ॥ जिण-सासण एउ उदयगिरि, उग्गिसइ वर-भाणु । सावय-कुलि संगोवि करे, पालिज्जउ सु निहाणु ॥ १२ साहु चरित-पासाय-धर, मुक्क सो सावय-भवणि । रंगिहि धूअ वहूअ भलावए, आपण एउ तारण-तरणी ॥१३॥ हालरू० सिट्टि सुनंदा पुत्तु मग्गेइ, अलहंती रोअंत तर्हि, पाइ खीर पन्नहइ झरंतिहि । सव्वि वि महिला मिलवि तसु, कुणइ किच्चु न्हाणाइ भत्तिहिं ।। छव्विह-जीवह रक्खकरु, वड्ढइ वयर-कुमारु । तईय वरसि गुरु-आगमणि, किउ राउलि ववहारु ॥ १४॥ हालरू० राउ बे पक्ख मेलवि भणए, मुझ पासि ल्हीऊ पूतु । तेडउ जणणीअ तउ जणकु, जसु पासि जाइ सो तासु पूतु ॥१५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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