Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ [ 50 ] सूर - उग्गमि सीहगिरि सुगुरु संपत्त यह भवणि, संघि सहीउ नर - वर नमंसिउ | सुय - कीलावण णेग सउं, पत्त सुनंद बहु-लोअ दंसीअ ॥ वयर-कुमरु पिक्खेवि निवु, बइसारइ उच्छंगि । भद्दे तिहूअण - मणहरणु, हक्कारिसु बहु-भंगि || १६|| हालरू० संघि सउं नरवर को विवादो, जो दूच्छी आधारु । प्रिययम - बंधवि मूक निब्भागिणी, आपिऊ पुतु मल्लारु ॥ १७ ॥ तं आवि-न वयरकुमार ! दूक्खिणी दुखु वीसारि पूत ! तउं आवि-न, माडिय हीअइ आधारु देवु । तउं आवि-न सुनंदा पभणए, आवि वाछ ! खेलावणां गहेवि । माइ - मणोरह पूरि हेव, हिअडए नेहु धरेवि ॥१८॥ तउं आवि-न, पसव- कालि जं दुहु सहइ, तंपि सयलु केवली मुणंतीअ । बालप्पणि सुउ लालतिय मंगल सयय करेइ । सो पुणु जणणीअ रत्ति - दिणु दुक्ख - लक्खु परि देइ ||१९|| तउं० कवणि न पावीउ मणूअ - भवो, कवणि न पावीउ सुक्खु । पुत्तु सो सुपुरिसु सलहीअए, जणणि जु जाणए दुक्खु ॥२०॥ तउं० दुक्खि पावइ जीवु थी - जम्मु दुहु बालीअ दुहु परणीअह, सहइ दुक्खु पीहर - विउत्ती । रति - दिवसु दुक्खिहिं गहीअ, करइ कम्मु पर मुह जुअंती ॥ दुक्खु अवच्चइ लालतीअ, एगागिणी सहेइ । जणणी - जम्मु सुदुक्खमउ, जिणवर वयणु कहेइ ||२१|| तउं० जई जिण - दीख तउं गहिअ - मणु, पच्छए लेजि ता पूत । अम्मा-पिअरि जीवंति वीरिं सा नवि गहिअ निरूत ||२२|| तउं० वच्छ ! जणणी दीण विलवंत । दोहग्गे तु ग्गिय रहि, बंधु वत्त निग्गुण निलक्खण । आवि पुत्त गुणगण - पवर, मरउं नाम वर- रूव-लक्खण ॥ इय विलवंतीअ नेह भरे, जइ नवि रक्ख करेसि । हिउं फुट्टवि सा मुइअ, पच्छा सवणि सुणेसि ||२३|| तउं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122