Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 46
________________ [41] समण[भ] त्तपाणं अपवित्तं । विमलगिरि-रेवइ(य)-सच्चउर माग(मा)इएसु तित्थेसु सम्मिद्दिट्ठिपभावेणं अभंगं पूइअ अवणिज्जं । कक्कि तामबद्धरिसिप(य ?) दियआसाण आरुहा(हि)ऊण पावाणुवंधिपुनस्स उदएणं तु पच्चक्खो श(बा ?) रसवरिसा एगच्छत्तं काऊण आरिय-अणारियाणं । सोहिऊणं पाडलिपुत्ते नयरे एगच्छत्तं काउं तिन्नि वा(व)रिसाणि जाव तउ पवेसो दे(दि)?माण पूयाविस्सई नियप्पभावेण । सो वि सव्वदंसणपरिव्वायगपडिणीउ करभ भो निप्पीलिय जण चउंवि कया वि(?) बुद्धट्ठिय लोहसमुद्दो सव्वदंसणा(ण)रिऊ सव्वपुहविजिहाण(जीवाण) संगहसीलो वि अरिहपवयणअकारणरिऊ वाऽएसु भिक्खबद्धसभाए सक्को चलियकुंडलो(ला)हरणो पढमविप्पपइडियावय - णिय(?) पच्छा चुलसी सव्वाऊ चित्त बहु[ल] अट्ठमीए भासरासियम(ग)ह पज्जंते । गावीरूवं अन्नह उव्वाहए सयाउत्ति । - ब्भीहंति कुलि(लिं)गा चोरेहि एया विलप्प(प्पं)ति ॥१॥ राया ऽमरेहिं दलिया गामा होहिंति नाम मित्ताउ । तस्स उदाएणं भरहं होत्था । वहुपक्खपडिवत्तं । हिंडंतो दट्ठण पव वि थूभे वनंददव्वस्स(?) । जाणित्ता खं णिज(ज्ज?)णथूभे तलेहिहा दव्व(व्वं) । पासंडो फेडिहा भजेहि करेहि साहु पुण भिक्खपावोहभोगवतों वीरहिडेवया तइया । वुच्छाहीपुरसच्चसाणेणंगगेरुप्पवाहेण । सत्तरसउ तत्थ दिणे मेहो वासिही निब्भंतं । साधणपरियणसहिउ बालसिवदवाणिकयनिचउ पुणरवि सो साहूण गोवाऽमिरोहणं कारेऊण मग्गिही भिक्खभागं अइवुद्धो पावपवुच्चो(?) आइरिउ महघ पाडिवउ सकप्पववहाछार(हार)जउ काउसग्गेणं पुणो सक्केणं धाडिउ वेन्तो(?) सिरिवीर भत्ती हज्जा कक्की मिद्धाडदंउउत्थिलि(?) जय जय जय सुगंधवासविसुद्धववन्ने सुवन्नाइवुट्ठी इक्खागुड वे दत्ते राए महाबले महासम्मदिट्ठी । पसरियजिणसासणप्पभाए एगच्छत्ताअरुहधम्मे दत्ते एगीभूए अरिहदंसणे खयंगए मिच्छत्ते । दत्तो य पइदिणं चेइहरं अहिणवं करिस्सइ । सव्वतित्थेसु पहावणे(गे?) सच्चउरे वद्धमाणजिण जम्म सिही(?) उक्किटुजिणालया तत्थ वि मिच्छादिट्ठिणो वहवे प्पडिवित्ता व(ब)भिया-परिव्वायगा गहवयणा ।। तइया इंदुवयारा, दिने धम्मस्स ग-यमाहप्पो । बहुलोउजिविणभत्तो, काही साहूण पूयाउ ।। सो दत्तो महाराया, काही जिणभुवणमंडियं होहा(ही ?) । सेय अवहीउ ससाणो होहिंति सुव्वइणो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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