Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[32] ते णं काले णं ते णं समए णं दाहिणसंडे पुण्यनाडयम्मिदीवे चंदेरीए पुरीए चंदप्पहपडिमा जीवंतसामि रइया सक्कपइटे(ट्ठि)या अ आउद्धपहावा विज्जाईयपइवा। आइत्त(च्च)सहस्सतेया सुरगणणमंसिया पिइवासं समुद्धियअट्ठिणठपल्लवा(?) अणवरिसंतं अमयप्पहावसमलंकियसव्वसरीरा विज्जाहर सहस्सपूईयरोहिणि पमुक्खदेवीहिं अभिणंदेज्जामाणा वाण-रक्खस-नराहिवसिद्धिकारगा दूसमा उ वासट्ठारसहस्सी जाव चट्ठिह(?) । तत्थ प्पहावेण सम्मत्तलंकियभवे जिणिंदधम्मट्टिए तिन्नि जोयण पविसए। तउ परं देवया भुवणवईमज्झे पूइस्संति ॥
चंदावई उद्देसो ॥
जं समयं लंकाए मंदोयरीए महासम्मद्दिट्ठि(ट्ठी) अट्ठमेण पोसहवएण ठिया। तिण्णि दिवसे तिहूयणसामिणीए नियचंदप्पह पडिमा मालिलुक्क(तिलुक्क) देवाभिहीणा अणवरयं सत्त वाराउ पूईय(पूयइ) वंदई नमसइ । कालक्कमेणं तट्ठाणाउ अउज्झाए सीयाए पूईया । तउ [व] हरिऊण देवयाए गिहिया । कयावि पंडुमहुराए पंडुरायाणा(णो)मासख[म]णस्स तवेणं तिहूयणसामिणीए अप्पिया । साय कुलियपायपट्टणे ठाविया । सा य सोलसहस्साहसमाए वियकंताए वणजक्खराओ पूईस्सइ ॥
रयणुद्देसो । चंदज्झयणं ॥
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ते णं काले णं ते णं समए णं कन्नउज्जदेसे हथिणागपुरे सिरिअज्जमहागिरि-अज्झसुहत्थिणो समोसढे । धम्मदेसणाविहिम्मि लोए पडिवुद्धे लोए को वि दुमगो विवन्नदेहो रत्थाए परिभममाणो ग(गु)रूहि पलोइउ । पुणो पुणो देवनंदसिट्ठिणा सव्वलक्खणुत्ति पभावग(ण)हेउत्ति नाऊण सगेहे घरणा(णी)ए समप्पिउ। पंचमो पुत्तो लालिउ । पुच्छिउ - कोसि तुमं ? । सयंभरउ जांगलवाहनाण(?) जियसत्तुनंदणो नाहडत्ति । कम्मेण जुव्वणे सोहगानिही दुव्विणीउ न किंपि सिक्खइ। पंचमंगलपढमपयसुयं गहियं ।
कयावि तत्थ पएसे घोरघट सिद्धपुत्तो जोगिंदसयपरिवुडो समागतो । मोहिउ तरुणजणो । सो वि पिच्छिउ सलक्खवणुत्ति । विज्जाए सिद्धिहेउत्ति खुद्दव्वयणेण समो(म्मो)हिउं "तुमं सव्वसिद्धत्ति करेमि" सोहिउ तं न मयइ । अमावसाए कंथारवणाए
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