Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[30] ईय सुमइतित्थं देवयाई पइप्पियं इह लवणभूमीए हि(दि)?मदिट्ठमदिद्धं(8)च कालउ । आसुर तीर्थ पंचई ॥ ?
ते णं काले णं ते णं समए णं चंदेरीए महासेणराया लक्खणाए देवीए भगवं चंदप्पहे समोसढे । तं सयमं(समय)चंदेराया, सतिलए(?)सोरट्ठयम्मि पच्छिमदिसामागए सुट्ठिय लवणाहिवइणा नगरं कयं तिलयपुरं । तत्थ भगवं चंदप्पहे समो[सढे] । सा जसमं मइसं(?)(जं समय) देवदेस(वि)विमाणे मा(आ)गए तत्थ चंदप्पहासे दुवालस जोयणवित्थडे समुज्जोईए । तस्स हरणं विक्खायं । भगवउ अरिहदत्त गणहारी कोडिपरिवुडे माहकन्हचउद्दसीए निव्वुए, शिवरत्ता( सिवरत्ती) विक्खाया ।
चंदविमाणअसंखउज्जोअं ते य पच्छिमदिसागं चंदपहासं भन्नाइ । असंखमुणिसिवगइखित्तं तु तित्थ(तं तत्थ) तिय(ति)हूयणसामिणीए देवीए भगवउ पडिमा ठाविया । तम्मि तित्थे वहवे पाणिणो सिद्धाऊ(ओ) । दुपयं(य)-चउप्पयपक्खिणो य नियकम्मनिज्जरवाए देय(वं) झायंति ।
कइया वि दसरहपुत्ते इत्थ खित्ते चाउम्मासियं करेइ । इत्थ सीयाविहारो जाउ। कई(इ)या वि दसवयणे कवि(इ)लासाउ चेईयवंदणं कुणतो तेलोक्सामिणीए चंदप्पहपडिमं अमियलिंगं गिण्हित्ता चंदप्पहासमागउ। ताव पच्छागएहिं इत्थ ट्ठाविया रोगायंकेहिं दसवयणे लंका का नयरिं पत्ते । तत्थ ससिवस(य?)णाए तेलुक्सामिणीए पट्टविउ पासाउ । तउ कालक्कमेणं असव्वा(च्चा ?)णं अपिच्छणिज्जं जोइलिंगं विक्खाम(यं) । वहवे विज्जहेरी(विज्जाहरा) सिद्धविज्जा जाया ।
तउ भगवं अरिहनेमी समोसढो । जायवाणं विजा(विज्जाहर ?)देवाणं पियमेलउ जाउ । पंडवा वि सिद्धविज्जा वारसवरि स] संठिया सलि(सि ?)लंछण-समुद्द-सरस्सईतीरे केवलन(ना)णठाणे बंभकुंडम्मि समवसरणम्मि ससि-सूर-राहु जोगे सिद्धिविज्जाठाणं ।
कई(इ)या वि भगवं वीरे समोसढे । सच्चई सिद्धविज्जे जाए । तउ दूसमाणुभावउ अपिच्छणिज्जं जोइलिंगं । तउ सेसे नायम्मि(?) कुतित्थपरिग्गहियं ।
सीसा सच्चइ भदं चंदेरीए य सोमरायम्मि । दूसमपवेस छस्सय गोयम ! वुड्डा य मिच्छत्तं ।।
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