Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[28] वी(व)यरसामिणा वनिउ ।।
एवं १३२ उद्धाराणं । पंडुराया पंचसहस्सपरिवुडो सिद्धो । हरिवंसुब्भवा कोडिसहस्सा सिद्धा । छ ।
ते णं काले णं । चंदेरीए नयरीए चंदप्पहे अरिहा बहूहि वाससहस्सा(स्सेहिं) समोसढो । तत्थ जालामालिणीए नियपडिमा अप्पिया । सिंहकन्नेण राइणा चेईयं कयं । तत्थ ठाविया पडिमा । चंदकंतमणिमई चंदप्पहपडिमा णिरालविआ(?), सा ण लवणाहिवई पूएइ । तप्पभावेणं वेलं नाइक्कमइ । ससिभूसणाभिहाणा पडिमा। पहासजक्खो निच्चं नढें पूयं करेयं(इ) । अमएणं अमयं लिंग(ग)भत्रइ, सव्वदुपयचउप्पय-खयरा वि नमसंति । के वे(वि?) कालं करिति । तिहूयणसिद्धो यगं(?) इत्थ णं वहवे सिद्धि(द्ध)विज्जा[जा] या । केव(वि ?)लद्धरज्जा लद्धतिहूयण लं(ल)छि(च्छि)णो । केवे(वि)भीमानु(?), सेसा दस रुद्दा महाविज्जा इत्थ जाया । चंदप्पहप्पहावेणं । जाल(ला)मालिणी स(भ?)त्ता विसेसउ केव तिनयणा(?)के वि लद्धातालंचदा(?) केवि कंठयलना(?) केवि उसउहवाहणा(?) ईसरा जाया। दस चक्कि-पडिवासुदेव-कन्ह-राम नरिंदपूइणिज्जा ।
इत्थंतरे अंग(अंधग )वन्हि भूयाए कुंतीए चंदप्पहे आराहिउ अट्ठत्तरसय अयासेणं(? उववासेणं?) । पंच पंडवा सुया जाया । उद्धरियं चेईहर(रं)। 'सयासिवु' त्ति अभिहाणं जायं चंदप्पहस्स । सिवभत्ता पंडवा । इत्थंतरे सिवरत्ती पइट्ठादिणं जायं महामहूसवो । चुलसीवाससहस्से सिद्धत्थनरिंदेण उद्धरिए । कालसंदीवएणं तहा । पेढालपुत्तेणं सुव्वयणा निच्चं आराहिए । तिलुक्कसामिणी विज्जा इत्थ सिद्धा ॥
एसो प(पं)ड(?)वुद्देसो बिमि ।।
इउ य-सीसा सच्चइ-रुद्दे चंदे राएई सोमरायम्मि । दूसमपवेस छस्सय-गोयम तुट्टीय मिच्छत्तं ॥(?)
भगवउ निव्वाणाउ छस्सए चंदेरीए सिरिवइरसेणसीस चंदारियसीस समंतभद्दारिया सव्वुत्तखुऽगा(?) चंदप्पहपहया(पया)हिणं करिते चेइयपयाहिणं सिरवुड्डग पुव्वण(ण्ह ?)कालम्मि सुमुहुत्ते पइट्ठिए । पुणक्खर लव भा ९ घ पू २२ तं समयंसि रावणाभिहाणो कालिए बुहष्पासं करिते । मज्झे लुट्टयं ठाविया अहिट्ठियं
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