Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ [27] एवं काले वियक्ते अणेग(?)। पुणरवि अणागए कालेमि(लम्मि) सूरदेवतित्थे समोसढे । पुणरवि संचउरं( सच्चउर) भरुयच्छट्ठाणे सा वि सुदंसणा आउं पालित्ता अवरविदेहं धाईसंडे अवरकंकाए विजयकेऊ राया । तर सव्वट्ठसिद्धे । तउ विदेहि (हे) सव्वाणुभूई तित्थगरे हुज्जा ॥ गोयमा ! तत्थ अणेगाइसयपहावहावियं भविस्सई अईयअरिहाणं वीसमतित्थगरस्स तित्थं भविस्सइ ।। सिरिगोयमसामिवि(व)नियं (ओ ?) सिरिसुव्वयतित्थुद्देसो ॥ [आसा ]वबोहतित्थे वाससहस्सत्तं(?) तित्थफलमेयं । तं सयगुणियं च फलं सित्तु(त्तुं )ज्जे गोयमा ! इत्थ ।। अ आ )साववोहतित्थज्झयणे तईउ उद्देसो ॥ छ । पंचकल्याणेषु सिरिसुव्वयस्सआसाववोहतित्थे, पूया य तवो अब्भतटुं च । असंखगुणं सुकयं, कल्लाणे(ण)गसव्वदिवसेसु ॥ माहे फागुणअट्ठमि--पंचमि-दसमीए(?)सु पुनिमा तई(इ)या । पूया दाणं न्हवणं उववासेणं असंखगुणं । चित्ते सुक्क(क्के) पक्खे वइसाहे पंचमाइ दससु ति(त)हा ब ॥(१) कर्पूरागुरुधूवे मयासए(?) संखगुणलाहो ॥ जेट्ठासाढे पंचमि-अट्ठमि-दसमीय(इ) पुनिमादिवसे । अब्भत्तटे पूया असंखगुणो तहा लाहो ॥ २॥ भद्दवए जा मासं निच्चं न्हवणाई एगभत्तं च । आसाववोहतित्थे लक्खगुणं निज्जरं कुणइ ॥ ३॥ आसोयसुक्कपक्खे एगं तरं पूयणं च उववासे । जं अन्नतित्थसुकयं णंतगुणं आसतित्थम्मि ॥ जो धय छत्तं घंटे कलसं आपत्तियं तहा घूवं । चमराइकारा(र)णेणं तित्थगरत्तं समुच्चिणइ । इय विहिणा जो तित्थे आसाववोह करेइ वच्छल(ल्लु) सो तईयत(भ)वे (मु)क्खो स चक्कवट्टी वि वा हुज्जा || एसो आसावबोहतित्थपभावो । इय आसावबो[ हा ]तित्थप्पभावो सिरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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