Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[34] अस(सं)भोईया तद्दिणाओ ।
सो राया अवंतिवई रायाण सम्मत्तं दावेइ । अणुरायाणं अणुयाई पुष्पारुहणाइ उक्खिरणगाइ पूयं । चेईयाणा तेसु भिख जेसु करे ति । वासजियाय वेण करिज । साहूण सुहविहारा जाया । पच्छं(च्चं ?)तिया दोसा.। समणभडभाविएसुं राजसुमणाईहिं साहू सुहपविहरियते(त्ते)णं विय भद्दिया तेसु । तओ स(रा)इणा धम्मवधवट्टि(?) स(सं)माणिओ सक्कारिउ विहारभूसियं कया(य)कनउजमंडलं ।
कयाइ चउ[द ?] से पोसहिउ पोसहसालाए वि सिद्धो(विसिट्ठो ?) गयणयलाउं(उ) चउब्भयं(?)बंभयारी उत्तरिउ। राया सदाविउ वंदाविउ। "वद्धमाणं(ण) ते(ति)त्थं अक्खयं निरंजणं कारेह"। अपत्थणिज्जो जाओ। गामे पुच्छे(च्छ)-यसाहूणो कहं एसो । बंभसंतिजक्खो वि हरिसिउ य । सद्दाविया नेमित्तिया । भूमि परिक्खि(क्ख)ण(णि)ज्जाए गामाणुगामं पलोयंता छम्मासेहिं मरुदेसं पत्ता भूमिं परिक्खंता सच्चतरपट्टणं गया । तत्थ चंदप्पहतित्थगर समवसरणतित्थभूमी चंदप्पहतित्थं । भगवउ वद्धमाणसामि( णो) जीवंतसामिपडिमा तित्थपरिक्खभूमीए कया । खत्तखणेणं कसाया खत्तियाणं रत्तभूगंधा । तत्थ दुव्वा(? च्चा?) तत्ततेलेण तत्ततऊयेणावि अंकुरा वि मि हूंति(?) ।
तत्थ पुरे जोगराया मंडलिउ । नेमित्तिएहिं नाहय(ड)रायस्स निद्दिष्टे पच्चक्खीहूए भणेइ - "कारेहा(ह) निउत्ता सुत्तहारा । कारियं चेईहरदुगं । वीरपडिमा सोवन्नमई पित्तलामईण संपुनपडिमं कारिए(कारियं, एवं ?) वंभसंति जक्खरायस्स। तउ बंभयारिणो सुत्तहारा । संपुन्ने कए सिरिअज्जसुहत्थिणो वंदिऊण अब्भत्थिया "पइ8 कारवेह सुमुहुत्ते नक्खेण(नक्खत्ते) ।"
भगवउ वद्धमाणसामिस्स वियकंते निव्वाणाउ तिन्नि वाससए वइसाहपुन्निमाए सोहणं लग्गं । जज्जगारिया पंचपुव्वधरा निद्दिट्ठा पंचसयसमणसंघपरिवुडा संपुन्ने वासे वाणारसीए पइट्ठिया । नाहडचक्कवट्टी सच्चउरे आगउ । अन्ने वि महानरिंदा समागया। मग्गे दाणं अभयस्स अमारिघोसणा । विज्जाहरया बहवे सम्मदिट्ठि(ट्ठी) जक्खरायदेवा य।
____ जज(ज्ज )गारिया वहुसमणसंघपरिवुडा कमेग दुगासयगामं पत्ता । वइसाहदसमीए । संघाएसेण उसहपडिमा पइट्ठिया । समागया सिरिसच्चउरपट्टणं । तत्थ एगेण खुड्डगेणं संखाभिहाणेणं कूवपएसे च्छगणवासक्खेवे कए । उद्धा वद्धावणा पायच्छित्ती, तउ वि विहिणा पइट्ठा ।
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