Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[24] वीया, कालं काऊण सि(सिं )घलदीवाहिवस्स विजयवाहुस्स रनो सुमंगलाए सुंदणा( सुदंसणा) पुत्ती जाया ।
कमेण वावत्तरि का(क)लाउ ग्गाहियाउ । कमेण जुव्वणट्ठियाए जयकेऊ नरिंदे विवाहणट्ठाए सयंवरामंडवमागच्छइ । तत्थ सहस्ससंखनरिंदाणं आयंताणं सच्चसवंमि(?)वट्टमाणे जाव णं रायसि(स)हाए कए उ "उत्स(त्सं)गट्ठियाए ताव अहिण[व]उवाणएणं पुरउ जीय अयल(ल)दत्तेणं भिउपट्टण सत्थवालेण "नमो अरिहंताण"न्ति भणणक्खरेणं तसं(तस्समयउ)वकाजाईसरणा पुव्वभवसमरणया सिरिसुव्वय वंदणट्ठयाए कयाभिग्गहा दिटुंतउवणयजुत्तीहि विसयविरत्तमणाए अम्मापियरं पडिवोहेमाणा सव्वसयणं अणुमन्नइ ।
न य रज्जं न विवाहो आहरणं महणं(मेहुणं ?) न इच्छामि । आसावबोहतित्थे सुव्वयपाए य मे सरणं ॥
इच्चाइ दढपइन्ना अट्ठारससहीपरिखुडा, सोलसरायपुत्तेहिं अट्ठहि महामंगल्लेहिं अंगरक्खवालेहिं अंगरक्खवालेहिं(?) कयरक्खा, अट्ठारसपवहणपूरियमणिरयणा मासियभत्ती(त्ति)एण समागया ।
मिच्छत्तधूमकेउ समुद्दमज्झम्मि तस्स गहणट्ठा । स(सं ?)मत्तगंमि पवणे सुव्वयपाए य सुमरंती ।। सीलप्पहावउ पुण दाणवरायं हणित्तु ज्झाणेण । समरंती नवकारं उत्तिन्ना जलह(हि)मग्गाउ ।।
भी( भि )उपुरं कयं वद्धावणयं । भयवउ दंसणे हरिसवसु प्फुल्ला(ल्ल)लोयणा कयबंभचेरा तित्थं पुज्ज(पज्जु)वासमणा(माणी) ठिया । कउ जिन्नुद्धारो । कओ सउणा( णी )विहारो । अट्ठाहियं काऊण आससुरं आराहिऊण कयं णवं चेईहरं अद्भुत्तरसहस्स व य(?) धया' विहूसिय कलयलं ।
इत्थंतरे सिरिउत्तर-दाहिणसंडस्स नरिंद-चक्कि-ईसर-सत्थवाहाईहिं पूइज्जमाणे(णा ?) अभिनंदिज्जमाणे(णा ?) सा सुदंसणा णिच्चं पूयणरया ज्झाणतम्मणा तल्लेसा वारस वासा विइक्कंता । तउ कई(य)भत्तपरिच्चाया सुदंसणा महादेवी महाबला महावीरी(रि)या महाप(र)क्कत(?)मा, जत्थ णं रोहिणिपामुक्खाउ सोलस १. ध्वजा
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