Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[22]
इच्चाइ सिद्धवाणं तिहू ( हु ) यण अन्नत्तरि विह माहप्पं । सिरिपुंडरीयतित्थं गोयम ! फासिज्ज सुक्खट्ठा ॥ सव्वाउ वि नईउ गयंधकुंडम्मि जत्थ अव [इ]न्ना । इंद्र (द) गवणाइरुक्खा उज्जिलसिहरम्मि आइट्ठा ||
दिव्वं रेवयसिहरं दव्व (दिव्वं ? ) कुंडं अरिट्ठवरनेमी । दे (दि) व्वो पहावो भयंव (भयवं ) ! लह[इ] तिसु तुहुत्तसिद्धाभि ( ? ) || एसो पुंडरीयज्झयणे छट्टुदे(द्दे)सो ॥
ते णं काले णं ते णं समए णं दाहा( हि ) णसंडे ल( न ? )म्मयापरिसरि, वण्णउ। सिरिपुरम्मि पढमं अजियतित्थंकरे अरिहा समोसढे । चाउम्मासिए विईए तउ तित्थं । एयम्मि समए सरस्सईवीढम्म चंदपुरे जाए। चंदप्पहतित्थे जाए ॥ इत्थंतरम्मि भिउपुरे जियसत्तु राया । पइदिणं छ सया अयाणं हुणणं । च्छमासे गए। आसरयणस्म हुणणट्टयाए माहमासे नम्मयातीरम्मि न्हाणं कारिउ । सो य अट्टवसट्टोवगउ उववन्नजाईसरणो चिंतेइ । तस्सणुकंपाए पयद्वाणपुराउ भयवं अरिहा मुणिसुव्वए माहसुक्कपडिवए चत्तालीस सहस्सपरिवडे सदेवासुरजख (क्ख) रक्खसकिंनरकिंपुरिसाए परिसा [ए] परिवुडे अट्ठमहापाडिहेरकयसोहे अद्धरत्तीए सिद्धेसुरमि(सिद्धपुरम्मि ? ) खण(णं) वीसमिऊण कोरंटुज्जाणवणम्मि सहयाररुक्खस्स अहोभागे समोसढे । राया वि जियसत्तू सत्तू सत्तू (?) सव्वन्नुसंसइउ पट्टासकोसो रपडित्ता (?) भयवउ वंदणट्ठाए पडिगउ । भगवं पि सदेवमणुजासुराए सहाए पडियरिय पडियरिय धम्मोवएसे कहिए वहवे पडिवोहिया । राइणा पुच्छिउ - "क (किं) जन्नाण फलं ?" "पाणिवहे नरउ" । आसो वि कयसंविगवेस्स गउ गलियअंसुपब्भारो ट्ठिउ । रायसमख (क्खं) पडिभासिउ ।
"भो देवाणुप्पिया ! तुमं समुद्ददत्तस्स समणोवासगस्स सागरपोतासिभिहाणो ( ? ) मित्तो | मिच्छदिट्ठी तुमं पि अतु ( उत्त )रायणे ज्झयकर्यालिंगम्मि असंखजीवस (सं) हारपिच्छणेणं मया पडिवन्नसंप (म) त्तो वि पज्जंते विराहि[य] धम्मो अट्टज्झाणेणं तिरियगईए संसारमाहिंडिऊण तुमं आसो जाउ । अहं तित्थयरो तुज्झ मित्तो । सिद्धगणधारी । तुमं पि संपयं धम्ममणुपालसु ॥"
इत्थंतरे नरिंदेण अणुजाणाविऊण अणसणं गिहिऊण सत्त अहोरत्ते भगवया पडिवोहिउ कालं काऊण सहस्सारे इंदसामाणिउ जाउ । पच्चक्खाभूएण अ तेरस कोडीउ उज्जलरयणाणं वुट्टा । पडिवोहियं सव्वं पि नयरं । कारियं सुवन्नरयणमणिविभूसियं
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