Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 26
________________ [21] एति अस वलही सिलाएच्चो जक्खदिन्नविज्जाउ गयणं (ण) ट्ठियआसो विमलगिरि - उज्झिलाइ जित्रुद्धार कारउ, अट्ठ पण ण ( ? ) याले कालगउ भुवणवदो । इत्थंतरे तित्थगरक्खणेणं वेसमणेणं उज्जिलसिहर - विमलगिरिम्मि | तउ परं पट्ठाणवई - सालिवाहणेणं नव छन्नुईए जित्रुद्धारो । तउ परं तेरसि सट्टे कन्न उज्जामनिवेणं जिन्नुद्धारो । तउ णं सोलसपन्नासे गुज्जराहिवइ उद्धारो सज्जणेणं काही । तउ परं दूसम (मा) वसेण अणारियदुग्गंधाइपराभवेणं कलिपरिणामवसेणं अदिट्ठाइस तिथे दो सहस्से दा स ]ब्भहिए द (य) अ (उ) द्धारो । सो वि दत्तो विदेहे वलदेवो सिज्झ (ज्झि ) सई । विसहस्सं जियसत्तू । छ सहस्से दमघोसो । अट्ठसहस्से नयवाहणे । दुवालससहस्से पउमो । अट्ठारससहस्से पुंडरिउ । वीसब्भड ( 5 ) हियसहस्से विमलवाहणो । जित्रुद्धारक इह सव्वे आसन्नसिद्धिया जीवा गोयमा (म) ! भरहरिव ( क्खि ) ते उववज्जिस्स तह सिज्झंति ( उववज्जिस्संति सिज्झंति) ॥ इगवीससहस्से वियते धणुसहस्सुद्धे पव्वयराए । तउ परं अणु (ण) पन्नियपणि (ण) पन्निया सि(वि) चिरं कालं पूय (इ) स्संति ॥ पुंडरीयज्झयणं ॥ जउ य इत्थ विमलगिरिम्मि सिद्धखित्तं अ ( आ ) इतित्थं मि(सि)वखित्तं तित्थरायं तित्थसु (म ) उडं आ( अ ) णाइनिहणं सिद्धतित्थं अभिहाणं । भागीरथं पुंडि ( ड) रियं सित्तु( त्तुं )ज्जयं । एयस्सि अवसप्पि (प्पि) णीए नामाई ( इं ) । एअम्मि सिहरे पंचकोडीसहिउ पुंडरिङ सहि (सिद्धि) गउ । नमिविनमी अड्डाइज्जकोडिसहिउ, दविड- वालिखिल्ल दस कोडी, भरह पमुह असंखकोडाकोडी, सगराईआ कोडीए। मासिएणं सिद्धा जा. सुविही । तए णं हरिवंसुब्भवाणं कोड (डा) कोडी सिद्धा । राम- सुग्गीव - विभीसणाईया । वीस कोडी सिद्धा । वाली पंचलक्खपरिवुडो सिद्धो । खेलगा[य]रिया संब- पजुव ( पज्जुन्न ) पमुहाउ अद्भुट्ठाउ कोडीउ उज्जलसिहरम्मि सिद्धा । राइमईपमुहा नव कोडी यउ (?) सत्त सहिलक्खा । सत्त सया ज्जा (जा) यवाणं रेवयसिहरम्मि पत्ता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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