Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 25
________________ [20] अउव्वविब्भमा सुत्त(?) काऊण समप्पिऊण सिक्खं दाऊण गया। कह(हि)यविहिणा मयणो सवंधवो न्हाउ । गइंदकंडाउ संकेयगणाई पलोयंतो कमेणं गच्छंति इगवीसं अट्ठ मंगि(ग?)लमंडलाउ, इगवीसं तोरणाइं विछिट्ठाणं पिऊण(?) छत्तसिलस्स अहोदुवारेण मज्झयण(णय?) भूमीए अणेगकंतिसुंदरः(र) अस्टुिनेमे(मि) त(ति)त्थगरसमवसरणं तिपयाहे(हि)णी काऊण पडिमातिगं वंदइ । भारही पडिमा उदियसहस्सकर नि[कुरंवा दिव्वपुष्पारुहणा दिव्वकुंडला अणेगाइसयाभिरामा सव्वअरिझुरयणहार(रा?) दंसणमित्ते निट्ठवियपाववंधणा भगवउ नेमिपडिमा नमंसिऊण- "अणुजाणह अंगुलीए तु(ग?) त्त फासणेण, उ (ऊँ ?) नमो भगवउ अरिटुनेमिस्स णं" भणंतो मयणो भिमुहो जयजयरवेणं आगच्छइ ।। एगेण छत्तेण धरिज्जमाणेणं अन्ने चमरए(य)धारए अन्ने गंधुदगक्खेवंकरेणं धूपुक्खेवं च करेइ । मंगलरवेणं चेईयस्स उवरिट्ठाणे पुच्छमुहो(?) ताडे(डि)या दुंदुही। सुवन्नवासं पुष्पवासं कारियं मणिरयणमयं चेईहरं । म[य]णस्स नाणं उप्पन्नं । समागउ इहो(?) वेमाणिय-जोइस-वण-भुवणतिअणेगलोयसंकुले । सोलु उदे( हे )सो ॥ इत्थं कालक(क)मेणं आससेण खत्तिएणं उद्धि(ख)रिए । नंदिवद्धणेणं। देवाणुप्पिया । एयं तित्थ(त्थं) असीयसाहस्स(स्सं) जाव सुवन्नमणिरयणं(ण) विहूसियं चेईहरं । मज्झं निवा(व्वा)णाउ अट्ठसए पणयाले विकंते देवाभिउगेणं सक्काइट्ठ वेसमणाएसेणं कयत्थाए अंवा [ए] चेईहररच्छाईयं ह(दू)समाणुभावेणं अणारिया लोया अधि(ध)म्मिया । अउ अदिट्ठअउव्व पभावंकालाणुभावउ इंदाइमणे(हे ?) पव्वदिणेसु खिल्लगीयत्रव(नच्च)णाईयं कंचणवल(ला)णए करिस्संति । वाहिरउ नमसणं अभित्तिय(?) दुग्गंधा अकिरियपाविट्ठमलेण चिंतंति । कूर किलिट्ठाइ अगणुयाणं दूरउ देवा ।। १ ।। मिच्छद्दिट्ठिअकलिया माहप्पतित्थ पुणो वि दोसहस्से महारूवे । उज्झलं ते ते पविज्झाइयपईवदिवसुव्व निसाए सव्वसुरमहोरगाईहि पूयणिज्जे भयवं अरिहनेमी। पुणि तारिसं चेईयं दिव्वं जियसत्तु-दमघोस-नयवाहण-उपम( पउम )पुंडरीयविमलवाहण नराहिवेहि उद्धरिस्सई । पच्चक्खा(पच्छा ?) विदेहखित्ताउ खयरा महिमं करिस्संति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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