Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 23
________________ [18] इत्थंतरे चउरो साहस्सिए विय (इ) कंते गंधारजणवए सरस्सईपट्टणे मयणसत्थवाहो अजि (ज्जि) यणंतरयण ( णो ?) अपराजिय (ए ?) सव्व(?) णाइ भायअंतंकिए कयाइ दिवयहे म (मु) णीसरपासे पुच्छइ - " किं तित्थं उक्कोसिंय ? "तेहिं भणियं-” तिहुयणम्मि सव्वको (व्वुक्को) सियं उज्जिलसिहरं महातित्थं, जत्थ अरिनेमी दियो । न्हवणं पूया य ततो (तवो ?) रेवयसिहरम्मि करइ भत्ती । तित्थगर ( - ) चक्कि - इंदत्तं तई (इ)य भवे निव्वुइं लहइ || जं वाससहस्सेणं खवेइ कम्माई अन्नतित्थम्मि || उज्जलसिहरम्मि पुणो समएणं जत्थ निज्जरइ || किं कणयं किं रज्जं किं वा इंदत्तणं कहं चक्की ? | जं तित्थाणं वंदण-नमंसणं च....... ॥ उज्जलसिहरे अट्ठाहिया (य) मासद्धमाससेवाए । वज्जीवं (जावज्जीवं ?) कम्मं खवेई (इ) आसन्नसिद्धिगउ ॥ उज्जितसेलतित्थि (त्थे) मयंदकुंडस्स कलसअहिसित्तो । भगवं अरिनेमी ते आसन्ना चरमदेहा ॥ उज्जलसिहरे उल्लोयणाई पज्जुनसंवपमुहाई । दट्ठूण सव्वपावाउ मुच्चइ जीवो वि सुज्झिज्ज ॥ काऊण महारंभं अविरइ मासण (?ण्ण ?) मिच्छदिट्ठीव । उज्जितसि ( से ) लतित्थं दहण (दट्ठूणं) सिज्झई जीवो ||३|| एयं सोउण कयचउत्थाउ ( इ ? ) अभिग्गहो संवत्सरं (रे) वियद्वंते बारवई पलयकालमारब्भ दंडगअडति ( वि ? ) व्व दुग्गइ पावसित्तए । तं वयणं सुच्चा अंबवणे मासोववासेण वेआवच्चगर काउसग्गेणं लद्धअंवाएसो निच्चलसम्मत्तो पारणयं काऊण घोसणयं कुणई य पडहं सद्दावेइ " जाणं वा धणं वा कंचणं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा विलेवणं वा संवलं वा तित्थवंदणट्टयाए करेमि" । एवं घोसिए छम्मासिएणं । जोयण सयमज्झि(ज्झे) अभे (णे) गजाण - जुंगिजल्लि - सगडाईएहि चलिया। ठाणे ठाणे रहजुत्ता चाक- चच्चरि - क्खिल्ल - गीय- नट्टाईए, अभयदानं (ण) - अणुकंपादाण - साहम्मियाई (इ) वच्छल्लकरणेहिं । पूइज्जमाणे सरस्सईपट्टणं विउक्कमित्ता गेजणय ( ? ) पविसंति । I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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