Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[16] मासाणं वारवईए नयरीए मज्झमज्झेणं कई(इ)या वि पसंसाए इब्भस्स गेहे मोयगे लक्षूण आलोयणं भगवउ काऊण "कन्हस्स लद्धि न हु ढंढणस्स" एवं सुच्चा कत्थ वि वणे मोयगे चूरंते अंतगडे केवली जाए । तम्मि दिणे अद्ध(द्ध)ट्ठाउ लक्खा पडिवोहिया । रेवयसिहरे कन्हे महाणं पि (?) गीयं नर्से खिल्लं करेइ। अट्ठाहियं कुणइ । इत्थ वहू सं(णं ?) सन्नीणं पडिवोहं करित्ता कई(इ)यावि आरियाणं पडिबोहं काऊण उज्जलसिहरम्मि समोसढो । भगवउ वंदणसुद्धयाए अहमहमीयत्ता(मिया)ए सव्वजायवाण वग्गे सइड्डिए सपरिवारे समक्खेए, दसदसारए मंडिए कन्ह चच्चरिखिल्लगीयनट्टविहिणा... ए दिव्ववाट्ठ(ह ?)णाइएसु चउलक्खाइ दाणधि वि (दि ?)ज्जमाणे(?) कणगवईपामुईए कारियद्धे सहस्साउ भवणाउ अप्पाणं सोमाणे उप्पन्नकेवले(ल)नाणे जाए, सेसा तिन्नि लक्खाउ जायवी[उ]निक्खंता । राइमई तम्मि समए अणेगलक्खपरिखुडा निव्वुया ।
तम्मि दिणे देवइच्चत्ति (?) गयसुकुमाले सत(त्त)हियसयं कन्नाउनेत्ता निक्खमिऊण सहसं[व]वणे काउसग्गेण महातित्थपहावेण सोमलटेण मत्थए कयमट्टियपालीजलंतअग्गी अंतगडकेवले(ली) महावेण (वणे ?) जाए ! इत्थ बहवे नव दसारा पडिवोहिया सपरिवारा । कइयावि मज्जपाणेणं अरिद्धं नाऊण परिचत्त(त्तं)। जउ णं संबेण सट्ठिसहस्सेणं स(म)त्तएणं दीवायणं संमि(समि)तए । तओ धम्मकिरियाए संतिघोसण(णे)णं वावत्तरिकोडीउ सत्तसट्ठिलक्खाउ सट्ठसयाउ जायवा सिद्धा । सत्तावीसगुणाउ जायवीउ सिद्धाउ। तिक्कालं जायवा अरिखनेमि पूयंति । पमायदोसं(से)णं वारवईए पलयाउ संब-पजु( ज्जु)न्न सारणाई अद्भुट्ठाउ कोडीउ कुमाराणं रेवयसिहरंसि अद्धमासिएणं भत्तेणं अपाणएणं उप्पन्नकेवलनाणनिव्वाणा जाया । अनिरुद्धो य कुमारो त(न)व कोडिसहिउ इत्थ तित्थसि(से)वणाए सिद्धे । विणायगो वि कुमारो तिलक्खो सिद्धो ।
इत्थ तित्थे पांडवा पडिवोहिया महासम्मदिट्ठिणो पभावगा । जा कइया वि गोयमा ! अट्ठारस अक्खोह(हि)णीउ कउरवेहि सम्म(सम) संहरित्ता एगच्छत्तं काऊणं रज्जं करेइ । एत्थंतरं[ मि] बारवईए दीवायणाउ पलयकालंसि छम्मासाउ कन्हे बलदेवउहत्थिकयाउ (?) कोसंभवणम्मि जलपावाट्ठयाए अभिभूयस्स कन्हस्स जराकुमाराउ वउ(?) वलभद्धे द्दे) पडिवोहिउ तुंगीसिहरम्मि वाससएणं रहयारदाणंसि वंभलोए । जराकुमा[ रा ]उ नाऊण हत्थिणाउरे पंडवा वेरग्गरंगियमणा णं महादुक्खाभिभूया णं इंदजालु व(लं व) जायवकुलं पिच्छंतो(ता) नारयरिसिं पिच्छंति,
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