Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 19
________________ इत्या [14] सहस्सनरिंदसं[ग]ए निक्खते। च्छट्ठस्स पारणं बारवईए नईए नयरीए वरदिन्नस्स नरिंदस्स गेहे संजायं । जाईसरणं जायं। पुव्वभवं पिच्छइ । अरिहनेमिपडिमा मए पूईया तं सव्वं । जाय (जहा) य पडिमं आराहेइ तहा भगवंतं वंदेइ । चेईयं कन्हो उद्धरइ। वीसं कोडाकोडीए पडिमाए जाया । . इत्थंतरे सव्वजायवेहिं पुणो वि रहनेमी सव्वसिंगारभूसिउ समाणीउ उग्गसेण तोरणे मंगलपु(घु ?) 8 करेइ । जाव राइमई सयंवरमाला हत्थगया चिट्ठमाणा एव सद्देइ - "खीरपाणं गहिऊण सिप्पहडे वमिऊण रहनेमि पउंजेसु, अणुजाणह गिण्हसु । पच्छा विवाहेमि'' । “एवन्ते कहं वंते गिण्हामि ? अहमवि वंता अरिटुनेमिणा ।" वंतुं(तं) इच्छसु(सि) आने(वे)उं सेयं ते मरणं भवे । अहं च भोगरायस्स तं च सुसु(सि) अंधगवण्हिणो । मा कुले गंधणा होमो संजमंमि(नि)हुउ व(च)र ।। जइ तं काहिसि भावं जा जा इच्छसि नारीउ । वायाविदु व्व हढो इट्ठियप्पा भविस्ससि ॥" पडिवोहिउ भगवया सह निक्खंते । (उत्तरज्झयणे) रेवयम्मि पंचमुद्देसो ॥ नमि(?)। -------- तहा वा(य?) उज्जिलसिहरम्मि अरिठ्ठनेमिस्स अणंते उववन्ने । तं समसि (समयंसि) सक्के णं वजेणं गिरिसिहरस्स मज्झं उठेंकेइ । तत्थ णं दसधणुहप्पमाणपइट्ठिया अरिष्टुरयणमई अरिहनेमिस्स (पडिमा) कारिया ठाविया य । तत्थ सन्न(त्त) मंडवा । मंडवंसि अट्ठत्तरसयअंसा । तत्थ सव्वरयणाहरणहूसि[या] वारस सहस्स देवीउ पोरसीए नच्चंति । महा(?)(तहा)तत्थेव सव्वम(न?)ईसि रावणं सव्वतित्थमयं अणेग अइसयाभिरामं हिच्चं(दिव्वं)गइंदकुंड डं) कयं । माणुसखित्तमहामई(नई ?) सिरावा(व?)ण जत्थ न्हवणं ति विउव्वंति। उ(अ?) सुरेहिं न्हविज्जड. विसेसउ पव्वतिहीसु, सव्वमं(?)(मन्नं) नट्टगीयमंगलरवेणं आराहिज्जा(?)इ सके। पडिमा दुप्पसहंते इंदाएसेणं वेसमणपूइ(य)णिज्जा । तहा गइंदकुंडजलस्स गंधफासाउ भूय-पेय-वेयालाउ दुटुंत(ट्ठवंत ?)राईयं धम्मावरणिज(ज्जं) रागदोसावलेवेण विलि[आ]आसन्नभवसिद्धियाणं कंचणबलाणएसु सेहि (?) सुरेहि अप्पट्ठाए वहवे सिद्धपडिमा ठविया । सिद्धो जक्खो कुवेराइट्ठो देवच्चणे कुसुमारूहणं कमलारुहणाइ करेइ । तत्थ कासणउभव्वा आसन्ना पयं मुच्चामो पमो (?) प(ए)यं महातित्थं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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