Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 17
________________ [12] सच्चभामा- रुप्पिणी- लच्छिपमुहाहिं निरुत्तरं काऊणं विवाहूसवं मन्नाविउ त्य(अ)म्मापियरसुयणवंधुवग्गेहिं । तं समयम्मि सव्वसवंसि (?) बाए(र) वईए नयरीए मज्झेणं उग्गसेणस्स धूयं राईमयं ( इं ) मग्गाविति । ऊसविंति दसारा अहिणवऊसवनट्टगीयखिल्लाइयं धपरडायं ( धयपडायं ? ) देवदाणवगंधव्वकुलाई जुगवं खेलमाणा चिट्ठेति । सार्वणसियछट्ठिए पढमं मज्जणंसि काऊण विचित्तविलंवणेणं हारं पलंव (बं) तिसर(रं) देवदूसपरिमुं (मं)डियं । इंदेणं रहो पट्टविउ मायली सारही. कोरंटगं छत्तं । अह ऊसिएण चामराहि य सोहिउ दसारचक्केण य सो सव्वउ परिवारिउ चउरंगिणी सेणाए रई(इ)याए जहक्कम (मं) तुरयणे (याण ?) सन्निवाणणं दिव्वेण गगणफुसे एवं एयारिसी पइ (?) दुवारवईए धवलमंगलतूरखेणं शं (सं) ख- वेयज्झुणि- दुंद (दु) हिमि (म्मि) ताय (व) दिव्वकल्लाणसयं जाव उग्गसेण तोरणंसि धारिणीए संतिकज्जाई जाव करेइ । वेमाणि[य] जोइवणभुवणदेवया जा थुणंति भगवंतं । राय ( इ ) मई तोरणसमयंसि वनंति । जायव सव्वूसवा वारवई (ई ) । जाव सयंवरहत्थगया विविहरूवलाइन्नसिंगारविब्भमगया कुडिलवंकलोयणा विहसियाणणा अच्छा चरियकन्ना जावराइमई चिट्ठ | काउ वि पडव (ह) हत्था चमरहत्था पणवहत्था मंगलहत्था | जाव सारहिं पुच्छइ - " को एस दीणसद्दो वीभच्छो ? । नीवाणं वद्धाणं सद्दो भगवं ! ' "कस्स अट्ठा इमे पाणपरिकाणा (पाणा पक्खिणो ) थलयरा का (वा) रसमाणा ? ।” 'तुम्हाणं विवाहे विचित्तसुयणाणं गुउर (गउर) वट्टयाए'। एयं सोच्चा, सोऊण तस्स सो वयणं वहुपाणिविणासणं चिंतेइ सा (सो) महापण्णे साणुक्कासे जिएहिउ "जइ मदा कारणा एए हम्मंति सुबहू जिया नाम, एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सइ । "इमं सरीरं अणिच्चं, असुई असुईसंभवं । असासयावासमिणं, दुक्खकेसाण भायण (णं) | असासए श(स) रीरमि (म्मि) फेण वच्चु (बुब्बु)य सन्निभे । पच्छा परियच्च [व्वे ?] रयं (इं) नोवलभामहं || माणुसत्ते असारम्मि वाहीरोगाण आलए । जरामरणवत्थंपि (मि) खणं पि न रमामहं ॥ जम्म दुक्खं जरा दुक्खं रोगा य मरणाणि य । अहो ! दु: [ खो]य संसारो जत्थ किसं (स्सं ) ति पाणिणो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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