Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
[5] ण्हवणसमयम्मि कुंकुमसिसियजलवहुलसमयम्मि गलियपडिमे संघो अब्भट्टिउ । कोव(वि) ढढराभिहाणे (णो) सावगो मूलसुक च्छे यणो ( ? ) उठ्ठिही ते खणं(तक्खणं?)जलणेणं पुराभिओगेणं । ताराउर-वलि (ल) ही- अमरउर-वसंतराय चाउद्दिसीए बारस जोयणाणि भासिही । केवलं आइ-पुंडरीय पाऊआउ चेईयरुक्खमूलपडिमा संतिपडिमा तहारुवा तत्थेव ट्ठिया सुरपूयणिन्जमाणा ।
इत्थंतरम्मि काले वट्टमाणे महैस्वर(?)नयरे वयरसामी दसपुव्वधरो आगमिस्सई । विमलगिरितित्थ निग्गयाउ परिसाउ । वहवे परिवोहियाउ । इत्थंतरम्मि वेग्गरंगियमाणया(सा ?)वट्ठी(?)पुच्छई गिहीणं कइविहे आरंभे हलखुत्तम्मि भूमीए कमाला सयं(?)पुणो
"जहा णं सोणियं तेसिं भरहद्धं चेव वुड्डई । चक्कक्खयम्मि मग्गम्मि वासा वासासुं गिण्हई ॥ जहा णं सोणियं तेसिं भरहं चेव वुड्डई । भावा चेव गच्छमाणीए सपत्तीए मंडलं |(?) जीवाणं सोणियं तेसिं जहाणं लवणोदही ॥"
इच्चाइ सुच्चा विरत्ता अप्पाणं निंदमाणे धम्मोववायं सारं पिच्छइ । आरंभं काऊण मुसा -अदत्त-मेहुणं अइसंकिल(लि)ट्ठ चित्तो सुज्झ(?)इ बुज्झ(?) वा वि)मलस्स जत्ताए ।
जावज्जीवं पावं पंडियमरणेणं(ण)जइ मरिज्ज तहा । ज्झायंतो सित्तुंज्जं सिज्जइ वुज्जइ पुणो कमसो । अनाएण(णं)दव्वं वडतो निच्चकूडसक्खिज्जो । ज्झायंतो सित्तुंज्जं मुच्चा(च्च)इ या(पा)वाओ सिप(ग्घ)यरं ॥ अप्पिज्ज(ज्ज)अब्भक्खं राईभोयणं च भु( )जंतो । सित्तु(त्तुं )ज्जयसेवाए मुच्चइ पावाउ सिघ(ग्घ) यरं ।। गब्भट्ठिया वि जीवा कललहिं वेट्ठि(ड्डि)या अविशु(सु)द्धसुई । रोराता(?)पुण जीवा जाव नि(न)पिच्छ(च्छं)ति विमलगिरि ॥ विमलगिरि माहप्पं वखाणए - "कोवि आसन्नभवसिद्धिउ संपइ उद्धरिही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 122