Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 8
________________ ; १५. [3] ५. रेवय(अज्झयण ?) पंचमुद्देसो कंचणबलाणुद्देसो एवमुद्देसा पंच छठ्ठ उद्देसउ सोटु उद्देसो १०. पुंडरीयज्झयणं ११. पुंडरीयज्झयणे छुडुद्देसो १२. आसावबोहतित्थज्झयणे तईउ उद्देसो पंडवुद्देसो १३. चंदेरीतित्थज्झयणं पंचमं चउत्थ उद्देसो १४. चंदप्पहासज्झयणं चंदावई उद्देसो १६. चंदज्झयणं रयणुद्देसो १६. सोलसमज्झयणं आमां मुख्यत्वे पुंडरीकगिरि, रैवताचल, अश्वावबोध(भृगुकच्छ)तीर्थ, चंद्रावती, चंद्रप्रभासपत्तन, सत्यपुर- आ बधां तीर्थो विशे विवरण छे. पुडलतीर्थ(आजे मद्रासनी नजीक छे)नो पण उल्लेख आमां मळे छे. अन्य पण एवा अनेक ऐतिहासिक उल्लेखो आमां जोवा मळे छे. जेवा के जावड/जावडि शेठ, महव्वय/महूय(महुवा), गूर्जरदेश, भुयड, दुर्लभराज, खुरासाण, श्रीमालपुर अने तेनो भंग, हम्मीरराज वगेरे. जावडशेठनुं मृत्यु तथा तेना आगामी भवनी हकीकत, शकुनिविहारनो प्रसंग सत्यपुरनी प्रतिष्ठा तथा तेनुं मुहूर्त इत्यादि अनेकविध पौराणिकऐतिहासिक माहितीनो आमां मजानो खजानो छे. इतिहासविदोनी दृष्टिए आमां घj प्राप्त थई शके. आ तबक्के तो आ रचनाने यथावत् मुद्रित करवामं आवे छे. तेमां निर्देशायेलां विशेष नामो वगेरनी सूचि वगेरे हवे पछी तैयार करवानो ख्याल छे. आ रचनानुं सौथी महत्त्व- पासुं ते तेनी प्राकृत भाषा छे. प्राकृतमां आवा प्रकारना प्रबन्धो जूज मळे छे, तेथी आनुं मूल्य ओछु न गणाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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