Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 7
________________ [2] अंश पण नथी. २. 'पढमाणुओग'नो जे रीते महिमा तथा स्वरू पवर्णन मान्य संदर्भोमां प्राप्त छे ते उपरथी ते प्रगल्भ अने गंभीर भाषागुम्फ धरावती एक विद्वद्भोग्य कृति होवानी छाप उपसे छे; तेनी सामे, प्रस्तुत रचना तद्दन त्रुटक, श्लथ अने वेरविखेर बाबतोना अणघड संकलन जेवी होवार्नु, सहेजे जणाई आवे छे. ३. आपणने उपलब्ध जाणकारी प्रमाणे, ओछामां ओछु, ११ मा शतक पछीथी पढमाणुओगना अस्तित्व पर पूर्णविराम मूकाई गयो हतो. ज्यारे प्रस्तुत रचनामा वि.सं. १२४७नो स्पष्ट उल्लेख कोई घटना संदर्भे जोवा मळे छे.तेथी आ रचना, वहेलामां वहेली गणवानी थाय तो पण विक्रमना १३मा शतकथी वहेली तो नथी ज, ते निश्चित लागे छे.म आटलुं नक्की कर्या पछी पण, आ रचना कोनी हशे? अने आने 'पढमाणुओग' गणाववानी हिंमत कोणे अने केम करी हशे ? ते प्रश्नो तो आ क्षणे अनुत्तर ज रहे छे. तज्ज्ञो तथा इतिहास-मर्मज्ञोने आ रचनामांथी ज आ विशे कांईक जडी आवे तो ते असंभवित न गणाय. प्रस्तुत प्रति विशे उपर वर्णव्यु ज छे. आनी बीजी नकल कोई जुदां नामे क्यांक कोई भंडारमा होय तो बनवाजोग छे. कोईना ध्यानमां आवे तो तेओ सत्वरे ते विशे प्रकाश पाडे. एक संभावना एवी थई शके के १३मा शतकमां पण पढमाणुओग के पछी तेना कोई अंशो, कोईने परंपराप्राप्त, बची गया होय, अने तेमांना पोताने रुचेला होय तेवा अंशोनुं के ते अंश-आधारित पोताना भावोनुं निरूपण/आलेखन, तेमणे आ रूपे कर्यु होय. अलबत्त, आ अटकळने कोई सबळ प्रमाणनो आधार तो नथी ज. परंतु, आ कृतिना आरंभमां "एवं तित्थथुणणं काऊण करिति पढमाणुउगं - धणमिहुणे त्यादि ।" एवी पंक्ति छे, ते उपरथी उपरोक्त कल्पना उठी शके खरी. श्री जिनप्रभसूरिकृत "विविधतीर्थकल्प'' ना "सत्यपुरकल्प" वगेरे अंशो साथे आ रचनाना ते ते अंशोने सरखावी शकाय तेम छे. आ रचनाना विविध अध्ययन तथा तेना उद्देशोनी मालिका आ प्रमाणे छ : १. पुंडरीय अज्झयण बीय उद्देसो २. पुंडरीय अज्झयण तईउ उद्देसो ३. पुंडरीय अज्झयण रेवयवणुद्देसो ४. पुंडरीय अज्झयण चउ उद्देसो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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