Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 9
________________ [4] ८० ॥ अहँ ॥ नमो दुवालसंगस्स ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं वीरे वद्धमाणे चउद्दसणसहस्सीहि सदेवमणुयासुरासुरेहिं परिव(वु)डे सोरट्ठयम्मि देसे विमलगिरिम्म पियालुचेइयदुम्म(म)स्स-हिट्ठा सोहम्माहिवई निम्मिय समवा(व) सररो (ण)स्स तित्थकरपेठ्ठ(ढ)यम्मि समोसढा(ढो)। भुवण-जोइ-वेमाणिया तित्थं पभांविति । भगवंतं तित्थपणामं काऊण थुणंति पभ(?)सिरि समणसंघतित्थं जयइ । "तिउलुक्कतित्थमउडो विमलगिरी जयइ विमलभूमी य । जत्थ ज(जु)गाइ जिणं (जिणेणं ?)जुगाइतित्थं समक्खायं ।।" एवं तित्थमु(थु)णणं काऊण करि(रि)ति पढमाणुउ( ओ )गं । “धणमिहुणे" त्यादि। "जाव ज(?)लवणे बिंदू सव्वढे ताव एय पं( पुंडरी( रि)ए । कालेहि बिंदुसंखा असंखसिद्धा य पंडुरीए( पुंडरिए)।" तं सत्तावीसगुणलक्खातु(उ)कं(?)बालबंभचारिणीउ सिद्धिं गयाउ उक्कोसा संखगुणाउ। अन्ने वि पुह[वि]वइणो उसभस्स पहुप्पए अखिज्जा । जाव जियसत्तू(त्तु )राया अजियजिणपिया समुप्पन्नो । गा(ग)गा एईय(णईय)बिंदू जावई(इ)या तत्थ तत्थ उद्धारो । असं(स्सं ?)खो पुंडरीए, जो सगरो चक्कवट्टी य ॥ एवं उद्धारेहि उवसोहेमाणे असंखइखा(क्खा)गवंसनरिंदकोडाकोडीउ सिद्धा जाव सुविही अरिहा । तित्थच्छेए अंतर(रं)तित्थच्छेओ । इउ य पुणो वि तं चेव मज्झिल्लएसु अट्ठसु कालं ति सेसेणं(?)उच्छेउ । एवं संती चक्की च्छखंडाहिवई सयं विमलगिरिम्मि पासायं काऊण उसहपडिमं सेसतित्थयरपडिमं कारइ । पुंडरीयपडिमं सिद्धिकलसं पट्टवेइ । सं(स)यं जीयंतसामिपडिमं चेईयहरं कारवेइ अभियकु(कुं ?)डं। जा चेईयहरं । जा रिटुनेमि निव्वाणकाले पंच पंडवा मुणिंदवीसकोडीहि, तहा कुंती नवलक्खा(क्ख)समणी पडिबुद्धा सिद्धा वइसाहपुनिमाए । तत्थ पुंड(पंडु) (?)पुत्तेणं गंधारेणं सक्काएसेणं कट्ठमयं देउलं लेवमई पडिमा पुंडरीओ सुच्चेव । एवं कालकमेणं मह निव्वाणाउ पंच य गए[व]री(रि)स अब्भहिए काले विय(इ)कंते मरुंडदेसस्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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