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करियर-२]
से साक्षात् लक्ष्मी उत्पन्न हो। इसपर उसके लिए वे एक घमें प्रतिदिन थोडे थोडे दूधको अभिमंत्रित करके रखने लगे कि इतने में एक दिन वहाँ रावण आया और उसने पेपर विजय प्राप्त करने के लिए अपने मोके चुमा बाणोकी चुभाकर उनके शरीरका बृद्ध बृद रक्त निकाला और उसी घड़े मे भर दिया। फिर वह घडा उसने मन्दोदरीको जाकर दिया और सा दिया कि वह एक विषसे भी है। परन्तु मन्दोदरी यह सोचकर उस रक्तको पी गई कि पतिका भुझ पर सच्चा प्रेम नहीं है और वह नित्य ही परस्त्रियोमे रमण किया करता है; इस लिए अब मेरा मर जाना ही ठीक है। परन्तु उसके पीनेसे वह मरी तो नही, गर्भवती हो गई ! पतिकी अनुपस्थिति गर्भधारणा हो जानेसे वह उसे दुपानेका प्रण करने लगी और आखिर एक दिन विमान में बैठकर कुरुक्षेत्र गई और उस गर्भको जमीनमें गावकर वापस चली आई। उसके बाद हल जोतते समय वह मंदोदरी - गर्भजात कन्या जनकजीको मिली और उन्होंने उसे पाल लिया । वही सीता है ।
पउमचरिय और पद्मचरित
विष्णुपुराण (४-५ ) में लिखा है कि जिस समय नवंशीय राजा सीवन पुत्रलाभ के लिए भूमिगत रहे थे, उसी समय लाङ्गलके अग्रभाग सीता नामक दुहिया उत्पन्न हुई।
बौद्ध जातक ग्रंथ बहुत प्राचीन हैं जिनमें बुद्धदेव के पूर्व-जन्मोंकी कथाएँ लिखी गई हैं। दशरथ जातक के धनुसार काशीनरेश दशरथकी सोलह हजार रानियों थी । उनमें से मुख्य रानीमे राम लक्ष्मण ये दो पुत्र और सीता नामकी एक कन्या उत्पन्न हुई। फिर मुख्य रानी के मरनेपर दूसरी पहनी हुई उसमें भरत नामका पुत्र हुआ। यह रानी बड़े पुत्रोका हक मारकर अपने पुत्रको राज्य देना चाहती थी तब इस भयसे कि कहीं यह बड़े पुत्रोको मार न डाले, राजाने उन्हे बारह वर्षतक धरण्यवास करनेकी आज्ञा दे दी और इस लिए वे अपनी बहिनके साथ हिमालय चले गये और यहां एक आश्रम बनाकर रहने लगे। नौ वर्ष के बाद दशरथकी मृत्यु हो गई और तब मंत्रियों के कहने भरतादि उन्हें लेने गये, परन्तु वे पिताद्वारा निर्धारित अवधि के भीतर किसी तरह लौटनेको राजी नहीं हुए, इस लिए भरत रामकी पादुकाओंको ही सिहासनपर रखकर
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उनकी ओर से राज्य चलाने लगे। आाखिर बारह वर्ष पूरे होनेपर वे लौटे उनका राज्याभिषेक हुआ फोर फिर सीताके साथ ब्याह करके उन्होने १६ हजार वर्ष तक राज्य किया ! पूर्वजन्म मे शुद्रोदन राजा दशरथ, उनकी रानी महामाया रामयी माता राहुनमाता सीता बुद्धदेव रामचन्द्र, उनके प्रधान (शष्य श्रानन्द भारत और सारिपुत्र लश्मण थे ।
इस कथा में सबसे अधिक खटव नेवाली बात रामका अपनी बहिन सीता के साथ ब्याह करना है। परन्तु इतिहास बतलाता है कि उस कालमें शाक्योंके राजघरानों में राजवंश की शुद्धता सुरक्षित रखने के लिए भाई के साथ भी बहिनका विवाह कर दिया जाता था । यह एक रिवाज था । इस तरह हम हिन्दू और बौद्ध साहित्य में रामकथाके तीन रूप देखते हैं एक बाल्मीकी रामायणका दूसरा अद्भुत रामायणका और तीसरा बौद्ध जातकका । जैन रामायणके दो रूप
इसी तरह जैन-सहमे भी रामकथा दो रूप मिलते हैं. एक तो पउमचरिय और पद्मचरितका और दूसरा गु भद्राचार्य के उत्तरपुराणका । पद्मचरित या पउमचरियकी कथा तो प्रायः सभी जानते हैं क्योंकि जैनरामायणके रूप में उसकी सबसे अधिक है परन्तु उत्तरपुराणकी कथा का उतना प्रचार नहीं है जो उसके ६८ वे पर्वमें वर्णित है । उसका बहुत संक्षिप्त सार यह है
राजा दशरथ काशी देशमें वाराणसीके राजा थे । रामयी माताका नाम मुबाला और लक्ष्मणकी माताका नाम केकेयी था । भरत शत्रुघ्न किसके गर्भ में श्राये थे, यह स्पष्ट नही लिखा । केवल कस्याचित् देव्यां' लिख दिया है । सीता मन्दोदरी गर्भने उत्पन्न हुई थी, परन्तु भविष्यद्वक्ताओं के यह कहनेसे कि वह नाशकारिणी है, रावण ने उसे मंजूषामेराकर मरीचके द्वारा मिथिलामें भेजकर अमीन में गडवा दिया था। दैवयोगसे हलकी नोकमें उलझ जाने से वह राजा जनकको मिल गई और उन्होंने उसे अपनी पुत्री के रूपमें पाल लिया। इसके बाद जब वह ब्याहके योग्य हुई, तब जनकको चिन्ता हुई। उन्होंने एक वैदिक 'यज्ञ किया और उसकी राके लिए राम-लमको श्राग्रहपूर्वक दुलवाया। फिर रामके साथ मीताको ब्याह दिया । यज्ञके समय रावणको श्रामंत्रण नहीं भेजा गया,