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ग्रन्थ-प्रशस्ति-संग्रह और दिगम्बर समाज
[ लेखक-श्री अगरचन्द नाहटा]
दिसम्बर समाजके ऐतिहासिक माधनोंक प्रकाशनकी समझकर उनके प्रकाशनकी ओर ध्यान देना चाहिए। उपना बड़ी अखरती है। सैकड़ो वि.नोके रहते ग्रन्थप्रशस्ति दो प्रकारवी होती हैं, जिनमसे हप भी इस उपेक्षाका विचार करने पर मखद आश्चर्य प्रथम ग्रन्थ-रचना-प्रशस्तिमें कक्किी गुरुपरमरा, होता है । श्वेताम्बर समाजकी ओरसे इस बार रचनाकाल एवं स्थान, तत्कालीन राजा, बादशाहादि अपेक्षाकृत अच्छा प्रयत्न हुआ है। उनके कई प्रतिमा- का नाम, प्रेरक और सहायक का नाम आदि बातें लेखसंग्रह, ग्रन्थसूची, माहित्यका इतिहास, पावली- लिम्बी हुई पाई जाती है। दूसरी प्राथ प्रति (जिसे संग्रह, प्रशान्तसंग्रह, ऐतिहासिक काव्य इत्यादि अनेक पुषिका लेख भी कहते हैं) में प्रतिक लेखनका समय, तिहासिक साधन प्रकाशित हो चक है व हो रहे हैं। स्थान, लेखक श्रीर लिखवाने वालेषी पूर्व परमारा, तब दिगम्बर समाजकी ओर से अद्यावधि एक भी राजाका नाम, इत्यादि अनेक महत्वपूर्ण जानकारीका पट्टावलोमंग्रह,मायिका इतिहास प्रकाशित हुआ देखनमे समावेश होता है कि भारतीय इतिहास,भगोलिक नही श्राता । भाकर एवं अनेकान्तमे प्रकाशित कई जन गच्छ एवं जातियों के इतिवृत्तकै सम्बन्धमे बहुत स्थानोमे मैने दिगम्बर समाजका ध्यान इस महत्वपूर्ण ही महत्वपूर्ण सामग्री कही जा सकती है। कार्य की ओर आकर्षित किया है, आर यह जानकर इन दोनों प्रकारकी प्रतियोमे संख्याकी प्रिसे बड़ी प्रसन्नता हुई कि वीरसेवामन्दिर द्वारा दिगम्बर पहिले प्रकार वाली अपेक्षाकृत कम और दारे प्रकार ग्रन्थसूची प्रकाशित करनेका प्रयत्न चालू हो गया है, की अत्यधिक पाई जाती हैं, क्योकि एक ही ग्रन्थकी पर अभी तक अन्य कई महत पूर्ण कार्य की ओर सैकडो हजारो प्रतिया यत्रतत्र उपलब्ध होती है, जिनमें कोई प्रयत्न प्रारम्भ होनेकी सूचना नहीं मिली, अाशा रचना प्रशस्ति नो मबमें एक समान अर्थात ा क ही है अन्य ऐतिहासिक साधनोक प्रकाशनको ओर भी होती है पर लेन-प्रशान्त भिन्न भिन्न और कभी दिगम्बर विद्वान और समाजके प्रतिष्ठित शीघ्राति- कभी एक ही ग्रन्थमे दो-तीन प्रशस्तियां तक पाई शीघ्र ध्यान देगे।
जाती हैं। श्रतएव इन दोनो प्रकारकी प्रशम्नियोका ऐतिहासिक साधनों में प्रशस्ति-संग्रह का वही मंग्रह तिहामिक मंशोधनमे बहुत ही आवश्यक एवं स्थान है जो कि शिलालेख-संग्रहका है। क्योकि जिस उपयोगी है। प्रकार शिलालेख-संग्रह-द्वारा मन्दिर और मूर्तियोंके श्वेताम्बर समाजके विद्वानोंका ध्यान बहुत अरसे निर्माण-समय, निर्माताका वंश-परिचय, प्रतिष्ठापक से इन दोनों प्रकारके प्रशस्तिसंग्रहकी ओर आकृष्ठ
आचार्यकी गुरुपरम्परा एवं जिस राजाके शामनकाल है, फलतः हजारों प्रशस्तियां प्रकाशमे श्रा चुकी हैं में प्रतिष्ठा हुई उन सब बातोंकी जानकारी होती है। और हजारों अप्रकाशित रूपमें कई विद्वानोके पास उसी प्रकार ग्रन्थ-प्रशस्तिमें भी प्रायः वे सभी बातें संकलित पड़ी हैं। भारतीय एवं पाश्चात्य शोधक गंफित रहती हैं। अतएव शिलालेख-संग्रहके प्रकाशन विद्वानोंने अनेक श्वेताम्बर ज्ञान भण्डारोका निरीक्षण की भांनि पुस्तक-प्रशस्ति-संग्रह भी महत्वपूर्ण कार्य कर उन ग्रन्थ प्रशस्तियोंको अपनी रिपोटों एवं सूचियों