Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 428
________________ किरण १२ जैनमाहित्यमें प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री ३६७ प्रार्थनापूर्ण आमंत्रणके रूप में लिख जाते होगे परन्तु काल पाकर उनका रूप अत्यन्त संस्कृत होगया। उन- प्राचीनकालमें जैन संघपति और प्राचार्य समामें चित्रकारीको भी भरपूर स्थान मिला । प्रपण- रोहपर्वक लम्बी लम्बी तीर्थयात्राएँ किया करते थे। स्थानका चित्रमयप्रदर्शन विज्ञप्तिपत्रमें किया जाता कुछ विद्वान साधु उन यात्राोका विवरण भी लिख था। संघके सदस्योका भी परिचय रहता और कभी डालते थे। इस प्रकारके विवरण भूगोलकी दृष्टिसे कभी इतिहास-विषयक घटनाएँ भी आजाती थीं। । अत्यधिक महत्वपूर्ण जान पड़ते हैं । इस विषयका श्रीजैनात्मानन्दसभा भावनगरकी ओरसे 'विज्ञप्ति - अच्छा परिचय श्री नाथूरामजी प्रेमीने अपने ग्रन्थ त्रिवेणी' नामक तीन पत्रोंका एक संग्रह श्रीमुनि जन जैन साहित्य और इतिहासके 'दक्षिणके तीथक्षेत्र' विजयजीके मंपादनमें सन १६१६ मे प्रशाशित हुआ नामक लेख में दिया है। इसमें ज्ञात होता है कि श्री था। इसमें मुनिसुन्दरमूरिका अपने गुरु देवसुदर- धर्मविजयसरिने प्राचीन-तीर्थमाला-संग्रह' नामका सूरिको लिम्बा हुआ मंचन १४६६ का एकपत्र १०८ ___ एक संग्रह श्रीयशोविजयनग्रंथमाला भावनगरसे हाथ लम्बा है। अभी १६४२ में श्री डा. हीरानन्द प्रकाशित किया था जिसका मल्य शास्त्रीने ऐशविज्ञप्तिपत्राज' नामसे अंग्रेजीमे एक - शानियोंकी लिली र्ट मचित्र ग्रन्थ इम विषयपर श्रीप्रतापसिंह महाराज छोटी-बड़ी पच्चीस तीर्थमालाएँ हैं। श्री शीलविजय राज्याभिपक ग्रन्थमालामें बड़ौदेसे प्रकाशित किया है। नामक एक प्राचीन साधुकी लिखी हुई तीर्थमाला भी इममे विज्ञप्तिपत्रों के स्वरूप और ऐतिहासिक महत्वका इसमें संग्रहीत है । संवत १७११-१७४८ के बीच सुन्दर विवेचन है। इसका पहला विज्ञप्तिपत्र आगरा जैनसंघकी ओरसे युगप्रधान मुनिश्रीविजयसनमुरिक यात्रा करके शीलविजयजीने अपने अनुभवस अपनी पाम पाटनमें भेजा गया था। यह विदित है कि तीर्थमालाको लिखा था। भारतीय भूगोलके अनुअकबग्ने हीरविजय, विजयसन और भानुचन्द्र आदि संधानमें इन तीर्थमालाओंसे पुराणगत तीर्थमाहाजैनाचार्यों के प्रभावमे आकर पर्युपणापर्वमे पशुहिसा- म्यों की तरह बहुत सहायता मिलसकती है। प्राचीन का मथा प्रतिषेध कर दिया था। पीछे जहांगीरके जैनग्रंथोम जिनप्रभसूरिकृत 'विविधतीर्थ-कल्प' तीर्थोंसमयमे यह आना रद्द कर दी गई । परन्तु राजा के इतिहासके लिये एक विलक्षण प्रन्थ है, जिसका रामदामकी प्ररणाम पुनः प्राचीन नियम बहाल किया विस्तृत विवेचनके साथ संपादन होना चाहिए। मूल गया। और जहांगीरने एक शाही फरमान आगरा ग्रंथ सिंघीग्रंथमालामे छप चुका है। इसमें मथुराके जैनममाजको १६१० में प्रदान किया। उसीकी सूचना प्राचीन जैन स्तूपका भी इतिहास है। इस विज्ञप्तिपत्रद्वारा बूढ़े युगप्रधान सुरीश्वर श्रीविजय ८ चरित्र-काव्यमनजीक पास भेजी गई । पत्रके प्रथमभागमें चित्र जानकी मरमा किती गई। इस कोटिम हम देवानन्दमहाकाव्य, कुमारपालउममें सम्राट् जहांगीर और राजकुमार खुर्रम तथा चरित, प्रभावकचरित, जम्बूम्वामीचरितम , हीरगजा रामदामके भी चित्र हैं। चित्रकार प्रसिद्ध शालि- सौभाग्यकाव्य जैसे विशिष्ट काव्योंको रख सकते हैं वाहन हैं जो जहांगीरी दरबारके कुशल चितेरों में से जिनमें इतिहाससाधनकी अपरिमित सामग्री है। हाल थे। आगरेकी तत्कालीन जनताका भी चित्रमें अंकन हीमें सिंघीग्रंथमालामें 'भानुचन्द्रचरित' नामक एक है। आशा है भदागेके प्राचीन संग्रहोंमें ढढनेसे अतिमहत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है जिससे अकबरऔर भी महत्त्वपूर्ण विज्ञप्तिपत्र प्राप्त होगे। कालीन इतिहास विशेषकर सम्राट और अन्य प्रमुख दरबारीजनोंके चरित्रपर सच्चा प्रकाश पड़ता है।

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