Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 459
________________ Registere No. A-137. Promusnan aadarun Teagasansapg Settrina X araandrolya -vasana (प्रेसमें) पाठकोंको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि 'पुरातन-जैनवाक्य-सूची (प्राकृतपद्यानुक्रमणी) नामका जो ग्रन्थ कुछ वर्षोंसे वीरसेवामन्दिरमें तय्यार हो रहा था वह प्रेसमें दिया जा चुका है और बाघेसे उपर छप भी चुका है'घ' वर्गके वाक्य समाप्तिके करीब है। यह ग्रन्थ ३६ पौण्डके उत्तम कागजपर २२४२६ साइजके अठपेजी श्राकारमें छपाया जा रहा है, प्रस्तावनादि सब मिलाकर लगभग ५०० पृष्ठका होगा और आशा है जल्दी ही प्रकाशित होजायगा। इस ग्रन्थको हाथमें लेते हुए यह नहीं सोचा गया था कि इसकी तय्यारीमें इतना अधिक समय लग जायगा। पहले प्रत्येक ग्रन्थकी अलग अलग वाक्य-सूची तय्यार की गई थी, बादको प्रो०ए०एन० नपाध्याय एम०ए०, कोल्हापुर जैसे मित्रोंका भी जब यह परामर्श प्राप्त हुआ कि सब ग्रन्थों के वाक्योंका एक जनरल अनुक्रम विशेष उपयोगी रहेगा और उससे ग्रन्थका उपयोग करने वालोंकी शक्ति और समयकी बहुत बचत होगी, तब सूची किये गये वाक्योंको फिरसे काॉपर लिखकर उनका अकारादि क्रमसे जनरल अनुक्रम बनानेका भारी परिश्रम उठाना पड़ा और तदनन्तर कापरसे साफ़ कापी कराई गई। इस बीच में कुछ नये प्राप्त पुरातन ग्रन्थों के वाक्य भी सूची में शामिल होते रहे, और इस तरह इस काममें कितना ही समय निकल गया। इसके बाद जब प्रेसमें देनेके लिए ग्रन्थकी जाँचका समय पाया तो मालूम हुआ कि कितने ही वाक्य सूची करनेसे छूट गए हैं और बहुतसे वाक्य अशुद्ध रूपमें संगृहीत हुए हैं, जिनमेंसे कितने.ही मुद्रित प्रतियों में अशुद्ध छपे हैं और बहुतसे हस्तलिखित प्रतियोमें शुद्ध पाये जाते हैं । अतः प्रन्थोंको आदिसे अन्त तक मिलाकर छूटे हुए वाक्योंकी पूर्ति की गई और जो वाक्य अशुद्ध जान पड़े उन्हें प्रन्थ , पूर्वापर सम्बन्ध, प्राचीन ग्रन्थों परस विषयक अनुसन्धान, विषयकी संगति तथा कोप-व्याकरणादिकी सहायताके भाधारपर शुद्ध करनेका भरसक प्रयत्न किया गया, जिससे यह प्रन्य अधिकसे अधिक प्रामाणिक रूपमें जनताके सामने आए और अपने लक्ष्य तथा उद्देश्यको ठीक तौरपर पूरा करने में समर्थ होसके।जांचके इस कामने भी, जिसमें कम-परिवर्तनको भी अवसर मिला, काफी समय ले लिया और कुछ विद्वानोंको इसमें भारी परिश्रम करना पड़ा। यही सब इस प्रन्थके प्रकाशनमें विलम्बका कारण है। मैं समझता है ग्रन्थके सामने आनेपर विद्वज्जन प्रसन्न होंगे और इम विलम्बको भूल जायँगे । अस्तु । यह प्रन्थ रिसर्च (शोध-खोज) का अभ्यास करने वाले विद्यार्थियों, स्कॉलरों, प्रोफेसरों, प्रन्थसम्पादकों, । इतिहास-लेखकों और उन स्वाध्याय-प्रेमियों के लिये भी बड़े कामकी चीज़ है जो किसी शास्त्रमें 'उक्तच' आदि रूपसे आए हुए उद्धृत वाक्योंके विषयमें यह जानना चाहते हों कि वे कौनसे प्रन्थ अथवा प्रन्थों के वाक्य हैं। काराजकी इस भारी मँहगीके जमाने में इस प्रन्थकी कुल ३०० कापियाँ ही छपाई जा रही हैं। अतः जिन विद्वानों, कालिजों, लायबेरियों तथा शासभण्डारों आदिको इस ग्रन्थकी जरूरत हो वे शीघ्र ही नीचे पतेपर अपना नाम ग्राहक श्रेणी में दर्ज करालें, अन्यथा अल्प प्रतियोके कारण इस ग्रन्थका मिलना फिर दुर्लभ हो जायगा। प्रन्थकी तय्यारीमें बहुत 'अधिक व्यय होनेपर भी मूल्य लागतसे कम ही रक्खा जायगा। पिछली सचनाको पाकर कुछ विद्वानों तथा संस्था. :ोंने अपने लिए कापियाँ रिजर्व कराई हैं, शेषको शीघ्र ही करा लेनी चाहिये। सरसावा, जि. सहारनपुर

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