Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 435
________________ ४०४ अनेकान्त । वर्ष ५ डंगरमिहके समान ही राज्यभारको धारण करने में २ यशोधरचरित्र ३ वृत्तसार ४जीबंधरचरित्र ५ पार्श्वसमर्थ बतलाया है । साथ ही उन्हें निर्मलकीर्तिसे युक्त नाथपुराण ६ हरिवशपुराण ७ दशलक्षणजयमाला कालचक्रवर्ती भी प्रकट किया है। जैसाकि सम्यक्त्व. ८ सुकौशलचरित्र : रामपुराण १० पोडशकारण जयकौमुदीके निम्न पद्योंसे प्रकट है: माला ११ महावीरचरित्र १२ करकंडुचरित्र १३ अण'तोमर-कुल-कमल-वियास-मित्त । थमीकथा १४ सिद्धचक्रचरित्र १५ जिणंधरचरित्र १६ दुबार - वैरि - संगर - अत्तित्तु । उपदेशरत्नमाला १७ आत्ममंबोधन १८ पुण्याश्रवकथा ढुंगरणिवरजधरापमत्थु । १६ श्रीपालचरित्र २० सम्मत्तगुणनिधान २१ सम्यवंदियजण समधियभूरिश्रन्थु । ग्गुणरोहगा २२ सम्यक्त्वकौमुदी २३ मिद्धान्तार्थसार । चउराय-विज-पालण-अणंदु । ग्रन्थों की इस नाम सूचीपरसे इतना स्पष्ट जाना हिम्मल-जस-वल्ली-भवण-कंडु । जाता है कि कविवरने पुराण एवं चरित्र ग्रन्थोंके कलि चक्किटि पायडणिहाणु । अतिरिक्त, सिद्धान्त, अध्यात्म और छंदशास्त्रादि विषय सिरि कित्तिसिंधु महिवह पहागु ॥" के ग्रन्थोंकी भी रचनाकी है। ग्रंथांकी इस नाममचीपरसे इतना तो स्पष्ट जाना उपरके इस समस्त विवेचनपरमे पंडितरडधुका जाता है कि कविवरने पुगण एवं चरित्र ग्रंथोके ग्रन्थ रचनाकाल म्पप्रतया वि० सं० १४६७ से लेकर अतिरिक्त सिद्धान्त, अध्यात्म और छंदशास्त्रविषयक म० १५०१ तक मालूम होता है। अर्थात यह वि० ग्रंथोकी भी रचना की है। की १५ वी शताब्दीके उत्तरार्धमें १६ वीं शताब्दीके शास्त्रभण्डागेंमें अन्वेपण करनेपर इनकी और भी पूर्वार्धमें हुए है। कृतियोंका पता चल सकता है । आशा है विद्गग कविवर रडधून अपभ्रंश भापामें बहुतमे ग्रन्थों इस विषयमें अन्वेपण करनेका प्रयत्न करेंगे। और का निर्माण किया है। अब तक इनके बना हुए २३ उसकी सूचना वीरसंवामन्दिरको भेजनका कष्ट उठायेगे ग्रन्थों का पता चला है। ये सब ग्रन्थ देहली, बम्बई क्योकि वीरसेवामन्दिरमे साहित्य तथा इतिहास-विषय और नागौर के शात्रभण्डागेमे पाए जाते हैं। इनके की मभी सामग्रीका संग्रह किया जा रहा है। नाम इस प्रकार है-१ आदि पुराण ( महापुराण) वीरसंबामन्दिर, मरसावा वेदना-गीत mero (ले०६०चैनसुखदास न्यायतीर्थ) नाथ ! सब कुछ खोगया, फिर भी न तुझको दया आती! सत्यव्रतका पुण्य फल मुझको मिलेगा यह न मान ! | मर चुकीं सारी समुत्थित-भावनाएँ नाथ । मेरी, ये समस्याये चिरन्तन कब खुलेंगी यह न जानें। यह विकट नेरी उपेक्षा हा ! मुझे प्रतिपल सताती! प्राण-खाऊ यातनाएँ खा चुकी हैं प्राण मेरे ! कब कहाँ अवमान होगा, इस निराशाको निशाका ? प्रार्थना फिर भी न भगवन् ! क्यों यहां अवधान पाती? दिव्य · दर्शन और कब होगा प्रभो तेरी दिशाका ? कल्पनाकी सौधमाला हो खडी गिरती अनुक्षण ! सब विकल हैं योजना अाज मेरी क्या कहूं मैं ! इम अशक्त मनस्थलीमे पर कहां तेरा निरीक्षण ! दुःख जर्जर हृदयकी श्राहे न हा ! तुमको जगातीं !! चेतना सब खोगई निवि बन्धन यह पडा है ! नाथ ! निष्ठामें बिताई जिन्दगी सारी मनोहर ! यह । तपस्याकी विफलता हा! मुझे निशदिन रुलाती!! निराशंसित सान्त्वना तेरी न पाई आज तक पर ! व्यर्थ ही अधिकारकी--बातें बनाकर क्या करूँ अब ? क्या विदा ले लूँ यहाँसे थक चुका हूं बोल तो कुछ ? खो गया रमणीय गौरव इन विधानामे यहां जब। | दुम्बकी ज्वाला न मेरी आज तो हियमे समाती !!

Loading...

Page Navigation
1 ... 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460