Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 454
________________ सम्पादकीय १. अनेकान्तकी वर्ष-समाति कृतज्ञता व्यक्त करने आदिके लिये उसे प्रकट कर ___ इस किरण के साथ अनेकान्तका पंचम वर्प समाप्त देना ही उचित समझा गया । आशा है उदारमना होरहा है। इस वर्षमें अनेकान्तने अपने पाठकोंकी बाबू साहब इसके लिये हमें क्षमा करेंगे। और भी कितनी सेवा की, कितने नये उपयोगी साहित्यकी सृष्टि जिन सज्जनोंने सहायता भेजी तथा भिजवाई है वे की, कितनी नई खोजें उपस्थित की, क्या कुछ विचार सभी धन्यवादके पात्र हैं-नये ग्राहक बनाने वालोंमें जागृति उत्पन्न की, तत्त्वार्थसूत्रके मंगलाचरण और इस वर्ष भी श्री दौलतरामजी 'मित्र' इन्दौरका नाम समन्तभद्र के समयादि-सम्बन्धमें कैमी कुछ उलझनें विशेषरूपसे उल्लेखनीय है। सुलभाई और व्यर्थ के झगड़े-टंटोंसे यह कितना अलग इसके सिवाय, जिन लेखकोंने अपने महत्वके रहकर ठोस मेवाकार्य करता रहा, इन सब बातोंको लेखोंद्वारा अनेकान्तकी सेवा की है और उसे उन्नत, बतलानेकी जरूरत नहीं-विज्ञ पाठकोंसे इनमें कोई उपादेय तथा स्पृहणीय बनाने में मेरा हाथ बटाया है भी बात छिपी नहीं है। हाँ, इस बातपर मुझे बराबर उन सबको धन्यवाद दिये विना भी मैं नहीं रह खेद रहा कि इस वर्ष मेरा अस्वस्थता और कागजकी सकता । इन सज्जनों में पं० नाथूरामजी प्रेमी, श्री समस्यादिके कारण पत्र समय पर प्रकाशित नहीं हो भगवत्स्वरूपजी 'भगवत', पं० फूलचन्दजी शास्त्री, मका ! इसके लिये पाठकोंको जो प्रतीक्षा-जन्य कष्ट बा० जयभगबानजी वकील, न्यायाचार्य पं० महेन्द्रउठाना पड़ा है उसके लिये मैं उनसे क्षमा-प्रार्थी हैं। कुमारजी, न्या. पं० दरबारीलालजी, पं०सुमेरचन्दजी साथ ही, धारणाम पेज भी कुछ कम रह गये । मेरी दिवाकर, प्रोव्हीरालालजी, श्री वासुदेवशरणजी अग्रधारणा ४० पेज (५ फार्म) प्रतिकिरणके हिसाबले वाल क्यूरेटर, डा० बनारसीदास, पं० के०भुजबलीजी ४८० पेज देनेकी जरूर थी, जिसमें ५४ पेजकी कमी शास्त्री, श्रीविजयलालजी, पं० परमानन्दजी शास्त्री, " रह गई; फिर भी कागजकी इस बेहद मॅहगाईके पन्नालालजी साहित्याचार्य, श्री दौलतरामजी 'मित्र', । जमानेम टाइटिल पेजों से अलग ४२६ पेजका घणा पं०दीपचंदजी पांड्या, पं० काशीरामजी शर्मा 'प्रफुहि.त', मैटर ३) २० में दिया जाना कम नहीं कहा जा (पृष्ठ ४२२ का शेषांश) सकता। इसपर भी मेरा विचार अगले वर्ष में इस ३६३॥-) पोटेज खाते खर्ध । कमीको पूरा करनेका अवश्य है । अस्तु; इस वर्ष जिन ११) सामयिक पत्रों के मँगानेमें खर्च । सज्जनोंने नई सलायता प्रदान की है उममें तीन नाम १) मुतफरिक स्वाते खर्च-बट्टा हुंडी-चेक आदिमें। खाम तौरम उल्लेखनीय हैं और बे हैं बाबू छोटेलाल जी जैन रईम कलकत्ता, ला० दलीपसिंहजी कागजी ३४८११) देहली और बाबू विमलप्रसादजी सदर बाजार १२) इस १२ वीं किरणकी पूरी छपाई, बंधाई, पोष्टेज देहली, जिन सभी महानुभावोंका मै हृदयसे आभारी और कुछ कागज आदिकी बाबत अंदाजन खर्च हूँ। इनमें भी बा० विमलप्रसादजी विशेष धन्यवादके करना तथा देना बाकी है। पात्र हैं, जिन्होंने अपनी ओरसे २६ जैन-अजेन व्य ६३७/०) लगभग बचत । क्तियों एवं संस्थाओंको अनेकान्त फ्री भिजवाकर एक अनुकरणीय आदर्श उपस्थित किया है। आप अपना ४२१०॥1-1 नाम प्रकट करना नहीं चाहते थे, एक वर्ष तक हमने जुगलकिशोर मुख्तार सेउ गुप्त रकबा परन्तु वर्षकी समाप्ति पर स्पष्ट रूपमें अधिष्ठाता वीरसेवामन्दिर' सरसावा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 452 453 454 455 456 457 458 459 460