Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 434
________________ किरण १२] अपभ्रंशभाषाके प्रसिद्ध कवि पं० रइधू ४०३ राजा इंगरसिंहके राज्यकालके ३ मूर्तिलेख मेरे और ग्रंथरचनाएँ भी की गई हैं । राजा डूंगरसिंहका देखने में आए हैं, जिनमें में एक सं० १४६७ का और राज्यकाल सं० १४६७ से कितने वर्ष पूर्व और सं० दो सं० १५१० के हैं । संवत् १४६७ के मूनि लेख*से १५१० के कितने समय बाद तक रहा, यह निश्चित रूप इतना तो स्पष्ट जान पड़ता है कि भगवान आदिनाथ से नही जा सकता, फिर भी सं०१५२१ से कुछ समय की उस मूर्तिकी प्रतिष्ठा प्रतिष्ठाचार्य पंडित रइधूने पूर्व तक उसकी सीमा रूर है; क्योंकि आरा जैनकराई है इसीस उन्हें प्रतिष्ठाचार्यरूपसं उल्लखित सिद्धान्त भवनकी 'ज्ञानार्णव की लेखक प्रशस्तिके, किया गया हैं। अन्वेषण करने पर ग्वालियरमें ऐसी जो सं० १५.१ मे लिम्वी गई है निम्न वाक्योंसे सं० कितनी ही मूतियां सलब उपलब्ध होसकती है जिनकी १५२१ में राजा इंगरसिंहकेपुत्र कीतिसिहका राज्य प्रतिष्ठा पं० रइधूने कराई होगी । साथ ही, अन्य दो करना पाया जाता है। मूर्ति लखोसे+ यह भी जाना जाता है कि गजा डूंगर- “मवत् १५२१ वर्षे असाढ मुदि६ सोमवासरे मिह के गज्यकालमें जैनमूर्तियोंका प्रतिष्ठाएँ हुई थीं। श्रीगोपाचलदुर्गे तोमरवंशे राजाधिराजश्रीकीनिसिहाराज्ये प्रवर्तमाने श्रीकाष्ठासंघे माथुरान्वये पुकरगणे भ० *"श्री श्रादिनाथाय नम: || मवत् १४६७ वर्षे वेशाख ... श्रीगुणकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीयशःकीर्तिदेवास्तत्पट्टे ७ शुक्र पनर्वमुनक्षत्रे श्री गोपाचलदुर्गे महाराजाधिराज भ० श्रीमलयकीर्ति देवाम्तत्पट्टे भ० श्रीगुणभद्रदेवागजा श्री इंग.. [इंगर्गमद गज मंवर्नमान श्री काठासंघ स्तदाम्नाय गर्गगोत्रे ... " माथुगन्यये पकग्गगाभट्टारक श्रीगुगणकीनिदेवास्तपट्टे ज्ञानार्णवकी लेखक प्रशस्तिके सिवाय अन्य कोई यश:कानिदेव [at] प्रतिष्ठाचार्य श्री पांडत ग्धू - [ग्धृ] साधन राजा की निसिहके राज्यकालका मेरे देखनेमे नस्य श्रान्नाये अग्रोतवंश गोयलगोत्रे माधुगत्मा तस्यपुत्र: नही आया। इसलिये राजाकीतिमिहके गज्यकालकी भाषा नस्य भार्या नाड़ी पुत्र प्रथम माधुलेम्मा दिनीय माधु कोई निश्चित सीमा नहीं बतलाई जा सकती। यहां महागजा तृतीय अमगज चतुर्थ धनपाल पचममाधु पाल्कः। सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि सं०१५१० के साधु क्षेमसी भार्यानोरादेवी.. . ....... जे ज्य]स्त्री सर बाद किमी ममय राज्यसत्ता कीर्तिमिह के हाथमें आई मुती पुत्र मल्लिदाम द्वितीय भार्या मावी पुत्र चन्द्रपाल । है। सं० १५२१ के बाद कितने समय तक उन्होने ममी पत्र द्वितीय साघु श्री गोजगजा भार्या देवस्य पत्र गज्य किया यह अभी अनिश्चित है। हां, सं०१५५२ पर्णपाल एतघा मध्ये श्री ...." त्यादि जिनसंघाधिपति काला के एक मूर्ति लेखसे इतना जरूर पता चलता है कि मदा प्रगमति" ।। उस समय ग्वालियरके राजा मल्लिसिह थे। मान्द्रम Indo Avans Vol. II P. 382 नहीं ये मल्लिसिंह किस वंश परम्पराके थे और इन (जैन लेखमंग्रह भाग २ पृ० ६२, ६३) का कीर्तिसिंहसे क्या सम्बन्ध था ? संभव है कीर्तिसिंह +दोनो मनिलेग्वामसे यहो पर एक का ही कुछ अंश उद्धृत के बाद राज्यके यही उत्तराधिकारी रहे हों। परन्तु किया जाना है। इसमें कीर्तिसिहके राज्यकी उत्तराधिका पता चल xमिदि मंवत् १५१० वर्षे माघमुदि ८ अष्टम्या श्री गोप- जाता है। गिगे महाराजाधिगज गजा श्री डंगर [इंग] ग्न्द्र देवराज्य पंडित रडधूने 'सम्यक्त्वकौमुदी' की रचना राजा प्र . ... [वर्तमाने] श्री काष्ठासंघे माथुरान्वये भट्टारक श्री कीर्तिसिंहके राज्यकालमें की है, और उन्हें अपने पिता समकाति देवास्तापट्ट श्री हेमकी-देवास्तत्व? श्री विमलकीनिदेवा" ..."तस्य आम्नाये अग्रोनवंशे गर्ग गोत्र"" *श्रीमद्गोपाचलगढदगें महाराजाधिराज श्री मल्ल मिहदेव. Indo Aryans Vol II. P.383.84 गये प्रवर्तमाने संवत् १५५२ वर्षे ज्येष्ठ मुदि सोम(जैनलेग्वमंग्रह भाग २०६३) वासरे....." प्राचीनलेवसंग्रह भाग २०६४

Loading...

Page Navigation
1 ... 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460