________________ अनेकान्त [वर्ष 5 हैं। मूर्तिके कर्ण के दोनों ओर देवियों की मूर्तियाँ और केन्द्र रहा हो / जबलपुरमें भी बहुतसी ऐसी पुरातन उसके नीचेके अर्धशरीरमें देवियोकी मार्तयां उत्की- जैनमूर्तियां पाई जाती है जो भारतीय मूर्तिनिर्माण र्णित है। पीछेका सिंहासन खंक्ति है। निम्नस्थान कलाम अत्यन्त महत्व रखती हैं। सभी मूर्तियोंका में दोनों ओर ग्रास बने हुये हैं। बताया जाता है संक्षिप्त परिचय यथावकाश कराया जावेगा। कि इस मूर्तिकी जोड़ी घुनसौरमं विद्यमान है। यह उपरोक्त विवरणसे स्पष्ट हो जाता है कि सी०पी० मूर्ति दसवीं शताब्दिक करीवकी होनी चाहिये। और बरार प्रान्तम बहुत सी ऐतिहासिक सामग्री छिपी न यहाँ एक कायस्थके घरपर कुछ हुई है। सच पूछा जाय तो मध्यप्रान्तक इतिहासका दिगम्बर जैनमूर्तियां रखी हैं। नगरके बाहिर एक टीला है जो शान्तिनाथ टोरिया नामसे प्रसिद्ध है। हुआ, तो फिर जैनइतिहासके प्रति लोगोकी उपेक्षा रहे इसमे पता चलता है कि यहाँपर पहिले जैनियोंका इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। मध्यप्रान्तमे घूमते समय काफी प्रभुत्व रहा होगा। यहाँसे एक मड़क घुनसारको जितना पुरातत्व हमे मिला उसका संग्रह यहॉपर कर जाती है। उसे तो जैनमूर्तियोंका केन्द्र बताया जाता दिया गया है। आशा है कि प्रान्तीय धनीमानी व्यक्ति है। यहाँ वतमान अवस्थामें भी बहुतसी ऐसी वस्तुएँ उपरोक्त संग्रहणीय वस्तुओंका संग्रह एवं सुरक्षा करने मिलती हैं जो मध्यप्रान्तीय संस्कृतिक गौरवकी अभि- का श्रेय प्राप्त करेंगे / ऐसी ही आशास लेख पूर्ण किया वृद्धि करती हैं / घुनसौर भी शायद पहिले जैनियोका जाता है। दही-बड़ोंकी डाँट ( लेखक-श्री. दौलतराम 'मित्र' ) बड़े-हाँ, आज आपसे दो-दो बाते करना है। बाबू ज्ञानचंद्र बड़ा बननेकी फिक्रमें हैं, बहुत ज्ञानचंद्र-तो, कहिये। कुछ प्रयत्न भी करते हैं, परंतु अभी तक बड़ा बन बड़े-आप लोगोंने हमारे साथ अभी तक नहीं पाये। जबानी (रसिक) व्यवहार किया है, परंतु क्या कभी वे एक दिन कहींसे थके-थकाये घर आ रहे थे। हमारे साथ हार्दिक (विचारफ) व्यवहार भी किया है रास्ते में हलवाईकी दुकान पड़ी। आवाज आई कि हम बड़ा कैसे बन पाये हैं ?-ज्ञानूबाबू, हम आप "दही बड़ोंकी चाद, ले लो दो पैसे में आठ !"-मन को अच्छी तरह जानते हैं, आप भी बड़ा बननेकी चल गया ! दही बड़े लेकर घर आये। बड़ोंका दोना बड़ी फिक्रमें हो। परंतु जिस तरीकेसे श्राप बड़ा सामने रखकर तकियेके सहारे लेट गये। बनना चाहते हो, उस तरीकेसे बड़ा नहीं बना जाता। यदि बड़ा बनना है बड़ा, तो तरीका हमसे सीखो ! स्वप्नमें वे देखने लगे-दही बड़े कुछ बड़बड़ा देखो बड़ा बनने के लिये परिषहे जय करना होती रहे हैं हैं। सुनो, हम तुम्हें अपनी बीती सुनाते हैं कि हम ज्ञानचंद्र-महाशय, क्या कुछ कहना चाहते हैं ? उर्ध्व (उड़द) जाति के धान्य बड़े कैसे बन पाये / हम