Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 368
________________ वप ५] पउमचरियका अंतःपरीक्षण ३४१ किन्नरकिंपुरि यमहोग्गा य गन्धव्यरकावमा जावा । ग्रन्धकी कुछ खास बातें भूया य पिसाया वि य अट्टविहा वारणमन्तरिया ।३२ पउमवांग्यके अन्त परीक्षण परसे कुछ बाते ऐसी __-पउमचारिय, २०७४ मालूम होती हैं जो ग्वास तौरपर दिगम्बर सम्प्रदायकी ज्योतिःकाः मूर्याचन्द्रममो ग्रहनक्षत्रप्रकीकतारकाच॥ मान्यतादिसे सम्बन्ध रखती हैं, कुछ ऐसी हैं जिनका श्वेता-तत्वा०, अ०४ मू० १२ म्बर सम्प्रदायकी मान्यतादिसे विशेष सम्बन्ध है और कुछ ऐसी भी हैं जो दोनोंकी मान्यताओं कुछ भिन्न प्रकारकी वन्तरसराग उचरिं पंचविहा जोइमा ती देवा। चन्दा सूरा य गहा, नक्खत्ता तारया नेया ॥ १४॥ जान पड़ती हैं। यहाँ मैं उन सबको विद्वानोंके विचारार्थ --पउमचरिय, ६० १०२ दे देना चाहता है, जिसमें उन्हें इस बातका निर्णय करने में मदद मिले कि यह ग्रंथ वास्तवमे कौनसे सम्प्रदायविशेषका इरिया भाषेपणादाननिक्षेपोत्सर्गाः ममिनयः। है, क्योंकि अभी तक यह पूरे तीरपर निर्णय नहीं होसका -तत्त्वार्थ, अ००५ है कि इस ग्रंथके कर्ता दिगम्बर-श्वेताम्बर अथवा यापनीय श्रादि इरिया भामा तह एमणा य आयाणमेव नियंत्रो।। कौनसे सम्प्रदायके प्राचार्य थे। कुछ विद्वान इस ग्रन्थको श्वेता. उच्चागई समिइ पंचमिया होइ नायव्वा ॥ ७१ म्बर, कुछ दिगम्बर और कुछ यापनीय संघका बतलाते हैं। --प उमचरिय, उ०१४ (क) दिगम्बरसम्प्रदाय-सम्वन्धीअनशनावमौदर्य वृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्त १ ग्रंथके प्रथम उद्वेशमें कथावतारके वर्णनकी एक सनकायक्लेशा बगद्यं तमः । प्रायश्चित्तविनय- गाथा निम्न प्रकारसे पाई जाती है-- वैयावृत्यम्वाध्यायव्युत्मर्गध्यानान्युत्तरम ॥ वीरम्स पवरटाणं विपुलगिरिमत्थप मनभिरामे । -तत्त्वा०, अ०६ सू० १६-२० तह इंदमूहकहियं सेगि, यरएणम्स नीसेसं ॥ ३४ ॥ आगमणमृणोइरिया वित्तीमंग्वेवकाय परिणा। इसमें बतलाया है कि जब वीर भगवानका समवसरण रन रिचागी य नहा विवित्तमयणाम चेव ॥७४ विपुलाचल पर्वत पर स्थित था तब वहाँ इंद्रभूति नामक गौतम पाच्छितं विगओ वेयावचं तहेव सभाओ। गणधरने यह पब रामचरित राजा श्रेणिकसे कहा है। भाग चिय उम्मग्गो तवो य अभंगे एमो॥ ७५ कथावतारकी यह पद्धति खास तौरपर दिगम्बर सम्प्रदायये -पउमचरिय, उ० १४ सम्बन्ध रखती है । दिगम्बर सम्प्रदायके प्रायः सभी ग्रंथ, इस तुलना परमे स्पष्ट है कि पउमचरियकी बहुत सी जिनमें कथाके अवतारका प्रसंग दिया हुआ है. विपुलाचल गाथाएँ तत्वार्थमृत्रके सूत्रों परसे बनाई गई हैं। ग्रंथके पर्वत पर वीरभगवानका समवसरण पाने और उसमे हंदअन्तमे ग्रथकारने 'एत्ताहे विमलेण मुत्तम हियं गाहानिबद्धं भूति-गौतमद्वारा राजा श्रेणिकको-उसके प्रश्नपर कथाके कय” इस वाक्य के द्वारा ऐसी सूचना भी की है कि उसने कह जानका उल्लेख करते हैं, जबकि श्वेताम्बरीय कथाग्रंथा मृवाको गाथा निबद्ध किया है। ऐसी हालतमें इस ग्रंथका की पद्धति इससे भिन्न है-वे सुधर्मस्वामी द्वारा जम्बू तत्वार्थमनके बाद बनना असंदिग्ध है। तत्वार्थसत्रके कर्ता स्वामीके प्रति कथाके अवतारका प्रसंग बतलाते हैं. जैसाकि श्राचार्य उमास्वानि श्रीकुन्दकुन्दाचार्यके भी बाद हुए हैं-- * देखो श्रवणबेलगोलके शिलालेख न०४०, १०५, १०८ वे कुन्दकुन्दकी वंशपरम्परामें हुए हैं जैसा कि श्रवण- x इस बात को श्वेताम्बरीय ऐतिहामिक विद्वान् श्री मोहनलाल बेल्गोलादिने. अनेक शिलालेखो श्रादि परसे प्रक्ट है। दलीचंदजी देसाई,एडवोकेट बम्बईने भी 'कुमारपालना सम और इस लिये पउमचरियमे उपकी रचनाका जो ममय यन एक अपभ्रंश काव्य' नामक अपने लेग्यम स्वीकार किया है दिया है वह और भी अधिक आपत्तिके योग्य हो जाता है और ट् से भी प्रद्य म्मचरित' नामक उक्त याव्य ग्रन्थके कर्ताको और जरूर ही किसी भूल तथा गल्तीका परिणाम जान दिग-बर बतलानेमे एक हेतु दिया है (देखो, 'जैनाचार्य श्री पड़ता है। श्रा मानन्द-जन्मशताब्दि-स्मारक ग्रथ' गुजराती लेग्व पृ०२६०)

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