Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 386
________________ अपराधी [ लेखक - श्री 'भगवत' जैन | [?] कोसाम्बी के धनकुबेर अंगारदेव प्रतिष्ठित व्यक्तियो में गिने जाते हैं। मन के साफ, प्रकृतिसे धार्मिक और सच्चरित्र पुरुष हैं। काफी आदर प्रतिष्ठा उन्हें प्राप्त है। प्रति धरातल अगर टटोला जायेगा, तव तो धन ही प्रमुख दिखाई देगा। क्योंकि आदर सरिता, धार्मिकता और नेकनीयतीक विना भी मिलता देखा जा रहा है। लेकिन निर्धनको दूसरे गुणो केस पुजता नही देखा गया। ऐसे दो चार दृशन्त जटाना गहरी खोजबीनका फल ही हो सकता हूँ। हॉ, विरागी मंडलकी बात जुदी है, क्योंकि वे हमारी दुनिया से जुड़े हैं । होता तो यही है, कि लाख 'देव' बदकारियों होते हुए भी 'पैसा' बुराइयों पर रहता है। प्रतिम, पूजामे कमी नही आने देना । महाराज गंधर्वसेनने एक दिन एक मणि, पद्मरागमणि अंगारदेवको दी-किसी अलंकार मे जड़ने के लिये यही तो अंगारदेवका व्यवसाय था । वह 'जवान' चतुर कलाकार थे। लोग उनके कार्य पर मुग्ध थे । यहाँ तक कि दूर-दरसे उनके पास काम आता और जब लोटकर जाता, तो शायद उनकी प्रख्याति को और भी मजबूत और भी विस्तृत बनाने की शर्त लेकर । और अंगारदेव इस लायक साबित हो सके, कि उन्हें कोई भी बेशकीमती टिके सौपी जा सके । बड़े लोगोका यकीन जो बड़े लोगों पर ही होता है। गरीबांकी ईमानदारी उनकी निगाहमे चढ़नी ही 1 कब [=] सौंदर्य-निर्मायक अंगारदेव मरि-कांचन-संयोग के उपक्रममे व्यस्त थे। कभी किसी तरह लगाकर देखते, कभी किसी तरह । कभी सोचने- 'किस तरह लगाने से अधिक मौंदर्यवर्द्धक बन सकेगा ? देर तक यही असमंजस रही । आखिर एक डिजाइन पसन्द आई। देर तो जरूर लगा, मगर डिज़ाइन भी ऐसी हाथ लगी कि एक बार खुशीसे मुँह दमक उठा । आत्म-संतो पकी लालीने ओटोपर मुस्कराहट लादी । उमंग उत्साह के साथ अङ्गारदेव बहुमूल्य मणिको अलंकार के रूप में परिणत करनेके लिए तैयार हो हो रहे थे कि उनका नज़र ईर्याप्रथम चलते हुए, दिगम्बरमाधुपर जा पड़ा। वे विश्ववन्य तपानिधि चर्याक लिए - शरीर स्थितिनिमित्त भोजन, नीग्स -भोजनक लिए वन नगर में पधारे थे । अंगारदेवकेमनमे भक्तिका निर्भर प्रवाहित हो टा, श्रद्धा मस्तक झुक गया । भीतर धार्मिक भावनाएँ जो पनप रही थी। सब कुछ यों ही छोड़छाड़, वे लगे महामुनिक आहार दानका पुण्य-उपाजन करने निर्विघ्न आहार समाप्त हुआ। अंगारदेव सभक्ति, उल्हसित हृदय स्तुतिकर चरणोंपर लौट गए। मन उनका अपार हर्षका अनुभव कर रहा था । तपोधन ज्ञानमागर आहार ले फिर उद्यानके लिए लोटे | अंगारदेव मुग्ध-नेत्रों देखते रहे उसी ओर, जब तक वे दिखाई देते रहे। हृदयमें सोच रहे थे-कितना पवित्र दिन है, आज महामुनिकी चरण-रजम

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