Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 390
________________ तत्त्वार्थमूत्रका मंगलाचरण द्वितीय लेबन (लग्बक--न्यायाचार्य पं. दरबारीलाल जन कोठिया) पाउकोको मालूम है कि मैने 'नवार्यमूत्रका मंगला की सामग्रीमे समाण हुआ, उसी मामग्रीके पिष्टपेषणसे चरण' नामका एक विस्तृत लग्न लिवकर उसे अनेकान्त वृतकलेवर हुग्रा तथा उनकी उखिर तक बतलाया गया की गत जुलाई-अगस्त मास की संयुक्त किरण न...में है। साथ ही, उकडोनों विद्वानोके महीनोमे अनुत्तरित प्रकाशित कराया था। मेग वह लंब न्यायाचाय प. पडे हुए लेबोके उत्तरका ही लेखमें मुख्यतौल किया महन्द्रकणारजी शासीकाशीके उस लेखके पूर्णतः उतर गया है. फिर भी अपने उत्तरको उन पत्रोंमे प्रकाशित न कराकर जिनमें उन विद्वानांके उत्तरणीय लेख प्रकाशित के साथ जनमिद्धाम्नमाकरकी जन मन की किरण हुए थे उसे अनेकाम्नमें प्रकाशित कराया गया और में प्रकाशित कराया था, और उसमें कुछ गहरी बन-बीन इस तरह विद्वदष्टिम मेरे जेवके महावको कम करने अथवा के साथ गार्माजीकी कतिपय गलत धारणाओं तथा भूला । 'डौल' शन्द्रका प्रमाग मनं जान बृझकर किया है, क्याक को स्पष्ट करके बनलाया गया था। मेरे उस बग्यमे शास्त्रीजी अपन नम्वक शुभम प्रकट तो यह कग्न है कि प्रभावित होकर शास्त्रीजीन शाम ही अपना दूसरा लेम्ब 'श्राप-परिहार' मलेका उनका माग उत्तर लेम्ब मुग्न्यतः उसी 'मोक्षमार्गस्य नेताम्म' शीर्षकको लिये हुए अनेकान्त पगमप्रमादोर जिनढामजीके लेबोका लक्ष्य करक की गन किरण नं.--में प्रकाशित कगया है। शास्त्रीजी लिया गया है परन्तु उनर उमंग गेमी बानीका भी का यह लग्ब मुझे ४ नवम्बरको देखनको मिला, जिम दिया गया है जिनका उक्त दाना विटानाक लेग्यांक माथ दिन किम २० दिन अवकाशानन्तर घरमे वापिम बीर काई मम्बन्ध नही है यार व म्याग कर पर गरे लेनम है। मेवामंदिरम आया था। लग्बका परकर मुझे कुछ पमनाना मम्गन्ध म्बी है। यहाँ पर में नमक नार पर गम एक हुई और कुछ प्राममना भी। प्रपनना हनिय हुई कि बात नाच प्रकट ये दना हगाखीजीन लेम्दमें अपनी उन दो मृलाको स्वीकार किया अपनी दृभग अनुमान । पृ.८ में शास्त्रीजी है जिनके तीन तीन संस्करण होजाने पर भी वे उन्हें लिग्बत है-"बना कि.मी प्राचीन प्रतियांक श्राधार मालमनही पड़ी थी और जिनमे एक नो बहुत ही सन्याय मत्रकादिभिः' पाठकी कल्पना विद्याप नही ani in मांटी थी। और अप्रमझाना हमालयं हुई कि, में लेखका हा मकनी" परन्तु वाधमत्रकार'क स्थानपरत्वार्यपूर्णनया उसर न देकर उसके साथ पंचाका व्यवहार मत्रकागादाम पाटी कल्पना न ना गमप्रमादजीने किया गया है जो उचित नही था इतना ही नहीं किन्तु की यो योर न २० जनढामजान-दन दोन विद्वानांक उस पर कुछ वीटे भी फेंके गये हैं-उसे बिना किसी लम्ब उन कल्पनाम शना है। बाम्नतम यह कल्पना मन जाँच पडतालके पं.रामप्रमादजी बम्बई और पं.जिनाम ही अपन लग्बम की थी बार टमको पप्रम कई युक्रिया भा जीशोलापुरके जैनगजट तथा जैनबोधकर्म प्रकाशित बग्वा दीगी. जिनपर कार्ड विचार नहीं किया गया। नव प० 'न भूलोका पहला मस्करण 'न्यायमुदचन्द्र' के द्वितीय मंन्द्रकुमारजीका इम कल्पनाको उन विट्टानाकी कल्पना भागकी प्रस्तावनाम, दूमग मम्मरण 'धमंयकमलमानण्ड'की तथा उनके लेग्वीका 'उनग्गीय अंश' बनानागा 'कतना प्रम्नावनाम और तीमग मस्सग्ण जैनमिद्वान्नमाम्करम अधिक अमंगन जान पटना है हमे चिन पाठक म्य प्रकाशित उक लेखम हुआ है। ममझ मन।

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