Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 409
________________ Registere No. A-731. पुरातन-जैनवाक्य-सूची (प्रेसमें) पाठकोंको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि 'पुरातन-जैनवाक्य-सूची' (प्राकृतपद्यानुक्रमणी) नामका जो ग्रन्थ हो कुछ वर्षोंसे वीरमेवामन्दिरमें नय्यार हो रहा था वह अब प्रेसमें दिया जा चुका है, छपना प्रारम्भ होगया है और शर कई फार्म छप भी चुके हैं। यह ग्रन्थ ३६ पौडके उत्तम कागजपर २२४२६ साईजके अठपेजी श्राकारमें पाया जा रहा है, लगभग ५०० पृष्ठका होगा और प्रेसके पुख्ता वादेक अनुसार ३-४ महीनेमें छपकर प्रकाशित हो जायगा। इस ग्रन्थको हाथमें लेते हुए यह नहीं सोचा गया था कि इसकी तय्यारीमें इतना अधिक समय लग जायगा । पहले प्रत्येक ग्रन्थकी अलग अलग वाक्यसूची तय्यार की गई थी, बादको प्रो० ए० एन० उपाध्याय एम० ए० (कोल्हापुर) जेस मित्रोंका भी जब यह परामर्श प्राप्त हुआ कि सब ग्रन्थोंक वाक्योका एक जनरल अनुकम विशेष उपयोगी रहेगा और उससे प्रन्थका उपयोग करने वालोकी शक्ति और समयकी बहुत बचत होगी, तब सूची किये गये वाक्योंको फिरसे का?पर लिखाकर उनका अकारादि क्रमसे जनरल अनुक्रम बनानका भारी परिश्रम उठाना पड़ा और तदनन्तर काडोंपरसे साफ कापी कराई गई । इस बीच में कुछ नये प्राप्त पुरातन प्रन्थोंक वाक्य भी सूची में शामिल होते रहे, और इस तरह इस काममें कितना ही समय निकल गया। इसके बाद जब प्रेसमें देने के लिये ग्रन्थकी जांचका समय आया तो मालूम हुआ कि कितने ही वाक्य सूची करनेसे छूट गये हैं और बहुतसे वाक्य अशुद्धरूपमें संगृहीत हुए हैं, जिनमेंसे कितने ही मुद्रित प्रतियोमें अशुद्ध छपे हैं और बहुतसे हस्तलिखित प्रतियों में अशुद्ध पाये जाते है। अतः प्रन्योंको आदिमे अन्त तक मिलाकर छूटे हुए वाक्योंकी पूर्ति की गई और जो वाक्य अशुद्ध जान पड़े उन्हें प्रन्थ के पूर्वापर सम्बन्ध, प्राचीन ग्रन्थों परमे विषयके अनुसन्धान, विषयकी संगति तथा कोषादिकी सहायताके आधारपर शुद्ध करनेका भरसक प्रयत्न किया गया, जिसमें यह ग्रन्थ अधिकसे अधिक प्रामाणिक रूपमें जनताके सामने आए और अपने लक्ष्य तथा उद्देश्यको ठीक तौरपर पूरा करने में समर्थ होसके । जांच के इस कामने भी काफी ममय ले लिया और कुछ विद्वानांको इममें भारी परिश्रम करना पड़ा। यही सब इम अन्धके प्रकाशनमें विलम्बका कारण है। मैं समझता है ग्रन्थके मामने आनेपर विजन प्रसन्न होंगे और इस विलम्बको भूल जायेंगे । अस्तु । यह अन्ध रिसर्च (शोध-खोज) का अभ्याम करने वाले विद्यार्थियों, स्कॉलरों, प्रोफेसरों, प्रन्थसम्पादकों, इतिहास-लेखकों और उन स्वाध्याय-प्रेमियों के लिये भी बड़े कामकी चीज़ है जो किसी शास्त्रमें 'उक्त'च' आदि रूप से आए हुए उद्धृत वाक्यों के विषयमें यह जानना चाहते हों कि वे कौनसे प्रन्थ अथवा ग्रन्थोंके वाक्य हैं। काराज की इस भारी मॅहगीके जमाने में इस प्रन्थकी कुल ३०० प्रतियां ही छपाई जा रही हैं। अतः जिन विद्वानों, लायबेरियों तथा शास्त्रभण्डारोंको इस प्रन्थकी जरूरत हो वे शीघ्र ही नीचेके पतेपर अपना नाम ग्राहकश्रेणी में दर्ज करालें, अन्यथा अल्प प्रतियों के कारण इस प्रन्थका मिलना फिर दर्लभ होजायगा । ग्रन्थ की तय्यारीमें बहुत अधिक व्यय होनेपर भी मूल्य लागतस कम ही रक्खा जायगा। अधिष्ठाता 'वीरमेवामन्दिर सरमावा. जि०महारनपुर मुद्रक, प्रकाशक.परमानन्दशासी वीरसेवामन्दिर मरसावाके लिये श्यामसुन्दरलाल श्रीवास्तव द्वारा श्रीवास्तव प्रेम सहारनपुरमें मुद्रित

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