Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 369
________________ ३४२ अनेकान्त [वर्प ५ संघदास गणीकी वसुदेव हिंडीके निम्म वाक्यम्से प्रकट है- गिनाए हैं। दिगम्बर सम्प्रदायके पट खण्डादि ग्रंथो में सर्वत्र "तत्थ ताव 'सुहम्मसामिणा जंवृनामस्म पढमाणु- १६ कारण ही बतलाए गए हैं। आगे तित्थयरचकट्रि-दमारवंम पम्वगागयं वसुदेव- (२) ग्रंथके चतुर्थ उद्वेग्मकी ५८ वी गाथामे भरत चग्यिं कहियं' ति तम्भव ... त्ति।" चक्रवर्तीकी ६४ हजार गनियोंका उल्लेग्व है * । रानियों की श्वेताम्बरोंके यहाँ मृल श्रागम ग्रंथोंकी रचना भी यह संख्या भी श्वेताम्बर मम् दायसे म्बन्ध रखती है। मुधर्मस्वामीके द्वारा हुई बतलाई जाती है, जबकि दिगम्बर दिगम्बर सम्प्रदायमे १६ हजार रानियोका उल्लेख है। परम्परामे उनकी रचनाका सम्बन्ध गौतम गणधर-इन्द्रभृनिके (३) ग्रंएके ७३ वे उद्देसकी ३४ वी गाथामे रावण साथ निर्दिष्ट है की मृत्यु ज्येष्ठ कुणा एकादशीको लिग्बी + । यह मान्यता (२) ग्रथके द्वितीय उदेसमें शिक्षावतोफा वर्णन श्वेताम्बर-सम्प्रदाय-सम्मत जान पहनी है, क्योकि हेमचंद्र करते हए समाधिमरण नामक सल्लेखना व्रतको चतुथ अवार्यने भी अपने 'त्रिपष्टिशलाकापुर पचत्रि में इस शिक्षाव्रत बतलाया है । यथा-- तिथिका उल्लेख किया है। यह भी हो सकता है कि मामाइयं च उपवान पोमहा अतिहिमविभागो य।। हेमचंद्राचार्यने अपने ग्रंथमे इस ग्रंथका अनुसरण किया हो। अंते ममाहिमरणं सिकन्या सवयाई चचारि ।। ११५ ।। कुछ भी हो दिगम्बर सम्प्रदायमें इस तिथिका कोई उल्लेख समाधिमरण रूप सल्लेबनावतको शिक्षावतामे परिग- नहीं है और न बाल्मीकि रामायण में ही यह उपलब्ध णित करनेकी यह मान्यता दिगम्बर सम्प्रदायकी है-- होती है। ग्राम तौरपर श्राधिन शुक्ला १० मी रावण की श्राचार्य कन्दकुन्दके चारित्रपाहुडमें, जिनम्येनके प्रादिपुराण मप तिथि समझी जाती है। मे. शिवकोटिकी रनमालाम, देवसेनके भावसंग्रहमे श्रीर थ उदटेस (पोटत था: वसनन्दीके श्रावकाचार जैसे ग्रंथोमे इसका स्पष्ट विधान में मांसभक्षी राजा सीदासको दक्षिण देशमे भ्रमण करते पाया जाता है । सिंहनन्दीके वरागचरितमें भी यह उल्लि- निमशासकीय मिला है। खित है । श्वेताम्बरीय श्रागमसूत्रोमे इसको कही भी लिखा है। शिक्षावतोंके रूप में वर्णित नही किया है, जैसाकि सुल्तार इन बातोंके अतिरिक्त १२ क्ल्पो (म्याँ) की भी एक श्री जुगलकिशोरजीको लिखे गए मुनि श्रीपुण्यविजयजीके मान्यताका इस ग्रंथमे उल्लेख है, जिन्पे कुछ विद्वानीने एक पत्रके निम्न वाक्यसे भी प्रकट है-- श्वेताम्बर मान्यता बतलाया है। परन्तु दिगम्बर सम्प्रदायके "श्वेताम्बर अागममं कही भी १२ बारह व्रतामे सल्ले तिलोयपण्णत्ती और वरांगचरित्र जैसे पुराने ग्रंथाम भी खनाका समावेश शिक्षावतके रूप में नहीं किया गया है।" १२ कल्पोका उल्लेख है। दिगम्बर सम्प्रदायको इन्द्रो अत: यह मान्यता खास तौर पर दिगम्बर सम्प्रदायके और उनके अधिकृत प्रदेशोंकी अपेक्षा १२ और १६ स्वर्गों साथ सम्बन्ध रखती है। की दोनो मान्यताएँ इष्ट है, जिसका स्पष्टीकरण बिलोकसार (ब) श्वेताम्बर-सम्प्रदाय-सम्पन्धी की तीन गाथाश्री नं. ४५२, ४५३, ४५४ से भले प्रकार (6) इस ग्रन्थके दूसरे उददेयकी ८२ वी गाथामे हो जाता है । तीर्थकर प्रकृति के बंधके बीच कारण बतलाए हैं+। यद्यपि * "चउमटि सहस्मा जुबईणं परमस्वधारीण।" उनके नाम ग्रंथमे कही भी प्रकट नहीं किये फिर भी२० + 'जेहस्य बहुल पक्ग्वे दिवसस्म च उत्यभागम्मि । कारणोंकी यह मान्यता श्वेताम्बर सम्प्रदायसे सम्बन्ध रखती एगारिसीए दिवम रावणभरणं वियाणाहि ।।" है क्योंकि उनके ज्ञाता धर्मकथादि ग्रंथों में २० कारण x तदा च ज्ये कृष्ण कादश्यामश्च पश्चिमे । *देखो, मुख्नार श्रीजुगलकिशोर-विचिन जैनाचायौंका शासन यामे मतो दशग्रीवश्चतुर्थ नरकं यौ।। भेद' नामक पुस्तकका 'गुगणव्रत और शिक्षा व्रत' प्रकरण । -त्रिप.पु.च०७-३७६ + "वीसं जिणकारणाई भावो।" = देखो, अनेकान्त वर्ष ४ किरण ११-१२ पृ० ६२४

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