Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 331
________________ ३०८ दह सुंदरकंडे एक्काहिय वीस जुग्भकंडे य । उत्तरकंडे तेरह संधीधो वह सव्वाउ ॥ छ ॥ पउमचरिउकी संधियाँ अनेकान्त १ इय इत्थ पउमचरिए धजयासिय सयंभु एवकए जिण-म्मुप्पत्ति इयं पढमं चिय साहियं पव्वं ॥ २ जिरावर शिक्मणं इमं बीयं चिय साहियं पव्वं ॥ १४ जलकीलाए सयंभू चउमुहएवं च गोग्गहकहाए । भहं च मच्छचेहे अजवि कणो या पावनि ॥ २० द्वय विज्जाहरकंड वीमहिं श्रासास एहिं मे सिद्ध । हिम उज्माकंड साहिज्जं तं णिसामेह | ध्रुवरायधीव (?) तय भुश्रप्पयत्तिणतीसुयाणुपादेण । णामेण सामिधन्वा सयंभुधरिणी महासत्ता ॥ तीए लिहावियमियां वीसहिं श्रासासएहिं पडिबद्धं । सिरि विजाहरकंडं कंडं षिव कामएवस्स ॥ ४२ उज्माकंडं समत्तं । श्रहच्चुएवि पडिमोवमाए भाइच्वंबियाप । बीउ उज्माकंडं सयंभुघरिणीए लेहवियं || ७८ जुज्मकंडं समत्तं ॥ ज्येष्ठ वदि ९ सोम । ८३ इय पोमचरिय-सेसे सयंभुएवस्स कहवि उब्वरिए । तिहुयण-मयंभु रइयं समाणयं सीयदीव-पन्वमियां ॥ वदासिय- तिहुयणसयंभु-कइ कहिय पोमचरियस्य । सेसे भुवणपगासे तेयासीमो इमो सग्गो ॥ कइरायस्स विजयसेसियस्स वित्थारिश्रो जसो भुवणे । तिहुयरासयंभुणा पोमचरियरूप सेसेण णिस्सेसे ॥ =४ इय पउमचरियसेसे सयंभु एवस्स कवि उब्वरिए । तिहुयणसयंभुरइए सपरियण-हलीस-भवकद्दणं ॥ इय रामएव चरिए वंदद्दश्रासियसयंभुसुय रहए । बुहयण-मण- सुह-जणणो चउरासीमो इमो सग्गो । = वंद सिय-महकइ सयंभु-लहु-अंगजाय विणिबद्धो । सिरिपोमचरियसेसो पचासीमो इमो सग्गो ॥ ६० इय पोमचरियसेसे सयंभुएवस्स कहवि उम्बरिए । तिहुयणसभर राहवणिव्वाणपव्वमिणं ॥ वंद श्रासिय तिहुयण-सयंभ परिविरइयम्मि महाकन्त्रे । पोमचरियस्स सेसे संपुराणो यवइमो सग्गो ।। १- सागानेरकी प्रतिमे ये दोनो पद्य 'तिहुवण सयंभुरणवर' आदि पाके पहले दिये हैं । [ वर्ष ५ रिट्ठमिचरिउका प्रारंभिक अंश सिरिपरमागम णालु सयल-कला- कोमल दलु । करहु विद्धूस करणे जायव- कुरुव- कुलुप्पल । * ** चितवs सयंभु का करम्म हरिवंस-महगणड के तरम्मि । गुरु-वयण- तरंडउ लद्ध या वि जम्महो वि या जोहर को बिकवि । उ खाइउ बाहत्तरि कलाउ एक्कु वि ण गंथु परिमोक्कलाउ तहिं श्रवसरि सरसइ धीरबद्ध करि कष्वु दिएण मद्द विमलमह इंदे समपि वायर रसु भरहें वासें वित्थर । पिंगले छंद-पय- पत्थारु भम्मद - दंडिगिहि श्रलंकारु । बाणेण समपि घणघणउ तं श्रक्खर डंबरु अप्पणउ । सिरिहरिसें यि उत्त उ श्रवरेहिं मि कहहिं कइतउ छडणिय- दुबइ-धुवएहिं जडिय च उमुहे समप्पय पद्धडिय जरण-रायणाणंद जणेरियए आमीसए सव्वहु के रियए । पारं भिय पुणु हरिवस- कहा स-समय पर समय-वियार-सहा धत्ता - पुच्छद्द मागहरगाहु, भवजरमरण- विचारा थिउ जि-सासगु केम, कहि हरिवंस भडारा ||२|| अन्तिम अंश इह भारह पुराण सुपसिद्धउ ऐमिचरिय हरिसाइद्धउ । वीरजिसे भवियो क्खउ पच्छई गोयमसामिण क्विड सोह में पुर जंबूसा में विहुकुमारं दिया | दिमित्त अरज्जियाहे गोवद्धरण सुभद्दहवाहे । एम परंपराई अलग्गड ग्रामरियह मुहाउ श्रावग्गउ । सुणि सखेत्तु श्रवारिक विउसे मयं महि वित्थारिक । पद्धडिया-छंद्रे सुमणोहरु भवियग्- जरण-मण-सवरा-सुहंकरु | जमपरिसंसकाहि जं सुराणउत' तिब्रुव-सयंभु किउ पुए उ । तासु पुत्तपिउ-मणिव्वा हिउ जसु यि जसु भुवणे साहि गय तिहुयणस्य भुसुरठा यहां जं उब्वरिउ कि पि सुखिया हो । तं जसकिमुदि उद्धरियउ वि सुत्तु हरिवंसच्छरिय उ णिय-गुरु-सिरि-गुण कित्ति पसाएं कि परिपुरण मण हो श्रपुराए मरसेणेदं (?) सेटि आए कुमर-यरि श्राविउ सविसेसे । २ बम्बई do पन्नालाल सरस्वती-भवनकी प्रतिमे यह एक चरण और आगे तीन चरण अधिक हैं। इससे सम्बन्ध ठीक बैठ जाता है । यह चारों चरण नेकी और प्रो० हीरालालजीकी प्रतिमे नहीं हैं । ३ बम्बईकी प्रति यह arrant पंक्ति नहीं है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460