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दह सुंदरकंडे एक्काहिय वीस जुग्भकंडे य । उत्तरकंडे तेरह संधीधो वह सव्वाउ ॥ छ ॥ पउमचरिउकी संधियाँ
अनेकान्त
१ इय इत्थ पउमचरिए धजयासिय सयंभु एवकए जिण-म्मुप्पत्ति इयं पढमं चिय साहियं पव्वं ॥ २ जिरावर शिक्मणं इमं बीयं चिय साहियं पव्वं ॥ १४ जलकीलाए सयंभू चउमुहएवं च गोग्गहकहाए । भहं च मच्छचेहे अजवि कणो या पावनि ॥ २० द्वय विज्जाहरकंड वीमहिं श्रासास एहिं मे सिद्ध ।
हिम उज्माकंड साहिज्जं तं णिसामेह | ध्रुवरायधीव (?) तय भुश्रप्पयत्तिणतीसुयाणुपादेण । णामेण सामिधन्वा सयंभुधरिणी महासत्ता ॥ तीए लिहावियमियां वीसहिं श्रासासएहिं पडिबद्धं । सिरि विजाहरकंडं कंडं षिव कामएवस्स ॥ ४२ उज्माकंडं समत्तं ।
श्रहच्चुएवि पडिमोवमाए भाइच्वंबियाप । बीउ उज्माकंडं सयंभुघरिणीए लेहवियं || ७८ जुज्मकंडं समत्तं ॥ ज्येष्ठ वदि ९ सोम । ८३ इय पोमचरिय-सेसे सयंभुएवस्स कहवि उब्वरिए । तिहुयण-मयंभु रइयं समाणयं सीयदीव-पन्वमियां ॥ वदासिय- तिहुयणसयंभु-कइ कहिय पोमचरियस्य । सेसे भुवणपगासे तेयासीमो इमो सग्गो ॥ कइरायस्स विजयसेसियस्स वित्थारिश्रो जसो भुवणे । तिहुयरासयंभुणा पोमचरियरूप सेसेण णिस्सेसे ॥ =४ इय पउमचरियसेसे सयंभु एवस्स कवि उब्वरिए । तिहुयणसयंभुरइए सपरियण-हलीस-भवकद्दणं ॥ इय रामएव चरिए वंदद्दश्रासियसयंभुसुय रहए । बुहयण-मण- सुह-जणणो चउरासीमो इमो सग्गो । = वंद सिय-महकइ सयंभु-लहु-अंगजाय विणिबद्धो । सिरिपोमचरियसेसो पचासीमो इमो सग्गो ॥
६० इय पोमचरियसेसे सयंभुएवस्स कहवि उम्बरिए । तिहुयणसभर राहवणिव्वाणपव्वमिणं ॥ वंद श्रासिय तिहुयण-सयंभ परिविरइयम्मि महाकन्त्रे । पोमचरियस्स सेसे संपुराणो यवइमो सग्गो ।। १- सागानेरकी प्रतिमे ये दोनो पद्य 'तिहुवण सयंभुरणवर' आदि पाके पहले दिये हैं ।
[ वर्ष ५
रिट्ठमिचरिउका प्रारंभिक अंश सिरिपरमागम णालु सयल-कला- कोमल दलु । करहु विद्धूस करणे जायव- कुरुव- कुलुप्पल ।
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चितवs सयंभु का करम्म हरिवंस-महगणड के तरम्मि । गुरु-वयण- तरंडउ लद्ध या वि जम्महो वि या जोहर को बिकवि । उ खाइउ बाहत्तरि कलाउ एक्कु वि ण गंथु परिमोक्कलाउ तहिं श्रवसरि सरसइ धीरबद्ध करि कष्वु दिएण मद्द विमलमह इंदे समपि वायर रसु भरहें वासें वित्थर । पिंगले छंद-पय- पत्थारु भम्मद - दंडिगिहि श्रलंकारु । बाणेण समपि घणघणउ तं श्रक्खर डंबरु अप्पणउ । सिरिहरिसें यि उत्त उ श्रवरेहिं मि कहहिं कइतउ छडणिय- दुबइ-धुवएहिं जडिय च उमुहे समप्पय पद्धडिय जरण-रायणाणंद जणेरियए आमीसए सव्वहु के रियए । पारं भिय पुणु हरिवस- कहा स-समय पर समय-वियार-सहा धत्ता - पुच्छद्द मागहरगाहु, भवजरमरण- विचारा
थिउ जि-सासगु केम, कहि हरिवंस भडारा ||२|| अन्तिम अंश
इह भारह पुराण सुपसिद्धउ ऐमिचरिय हरिसाइद्धउ । वीरजिसे भवियो क्खउ पच्छई गोयमसामिण क्विड सोह में पुर जंबूसा में विहुकुमारं दिया |
दिमित्त अरज्जियाहे गोवद्धरण सुभद्दहवाहे । एम परंपराई अलग्गड ग्रामरियह मुहाउ श्रावग्गउ । सुणि सखेत्तु श्रवारिक विउसे मयं महि वित्थारिक । पद्धडिया-छंद्रे सुमणोहरु भवियग्- जरण-मण-सवरा-सुहंकरु | जमपरिसंसकाहि जं सुराणउत' तिब्रुव-सयंभु किउ पुए उ । तासु पुत्तपिउ-मणिव्वा हिउ जसु यि जसु भुवणे साहि गय तिहुयणस्य भुसुरठा यहां जं उब्वरिउ कि पि सुखिया हो । तं जसकिमुदि उद्धरियउ वि सुत्तु हरिवंसच्छरिय उ णिय-गुरु-सिरि-गुण कित्ति पसाएं कि परिपुरण मण हो श्रपुराए मरसेणेदं (?) सेटि आए कुमर-यरि श्राविउ सविसेसे । २ बम्बई do पन्नालाल सरस्वती-भवनकी प्रतिमे यह एक चरण और आगे तीन चरण अधिक हैं। इससे सम्बन्ध ठीक बैठ जाता है । यह चारों चरण नेकी और प्रो० हीरालालजीकी प्रतिमे नहीं हैं । ३ बम्बईकी प्रति यह arrant पंक्ति नहीं है।