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________________ किरण ८५] महाकवि स्वयंभु और त्रिभुवनम्वयंभु ३०६ गोवगिरिहे समीवे विमालए पशियारहे जिणवर-चयालए। निहुवा-सयंभुमहाका-समाणिएमम सरणंणाममउमामगंगा मावयजगहो पुरउ वखाणिउ दिदु मिच्छत्त मोह अवमाणिउ १०२ इय. ... ... ... . .. . . मयंभु-उन्नरिए जं श्रमणंते इह मई माहिउ त सुयदेवि स्वमउ अवराहउ । तिहुवण-सयंभु-महकइ-ममाणि कराह-महिल-भवगहणमिणं गंदउ मासणु सम्मइणादहो गंदउ भनियण कय-उच्छाइहो निहुवगो जइ वि ण होतु शंदणा सिरिमयंभुएचस्य । णंदउ परवड पय-यालंतही गंदउ दयधम्म वि अग्हतहो। कब्व कुलं कवित्त तो पच्छा को ममडरइ ॥ कालं वि य णिच्च परिसक्कउ कासु वि धणु कणुदितु ण थक्कउ १०६वत्ता-तेधण्णा मउण्णा के विग्ग पालियमंजुम फेडिय-दुम्मद भद्दवमामि विणामिय-भवकलि हुउ परिपुण्णु च उद्दमि णिम्माल इह भवे जसुकित्ति पवित्यरिवि हुंति सयंभुवणाहिवह ॥ घना-इय चउविह संघई, विहुणिय-विग्धई, इय रिट्र "मयंभुविरहए-णारायणमरण-पन्चमिणं ॥ णिण्णामिय-भव-जर-मरणु। १०७ पत्ता-सइंभुयगण विदन धणु जिम विलासज्जा संत जसकित्ति-पयामणु, अविलय-मामणु, तम सुहामुह-कम्मडा भुजिज्जहि णिभंत ।। पयड उ संति मयंभु जिणु ॥ १७ ॥ इय रिटठ "" मयंभुएव-उबरिए। प्रय ग्छिणेमिचरिए धवलइयामिय-मयंभुण्व-उवरिए । तिहुवणमयंभु-इए ममाणियं मोयबलमदं ॥ निहवण-सयंमनहाए ममाणियं कराकित्तिहरिवंमं ॥ १०८पियमायगिडगिडयमडिविखाइयभूमियरिणयजसकित्तिजणि गुरु-पत्र-वाममयं सुयणाणाणुक्कम जहाजायं । जिणदिवबहे कारणे दुर्वाणवारणे देउ सयंभुयधरवि मणि सयमिक-दुद्दह-अहियं संधीग्रो परिममनाओ ॥ संधि ११२ ।। इय रिट्ठ..........."मयंभुएव उन्वएि। इति हरिवंशपराणं समाप्त। तिहुयणसयं भुगहए हलहर-दिवासमं कहियं ।। जग्कुमररज्ज-लंभी, पडवघरवाम-मोहपरिचायं । हरिवंशकी सन्धियाँ सय-अलाइय मंधी समागिय एत्य बरकरणा ।। , इय रिठ्ठणेमिचरिए घपलक्ष्यासिय-मयंभुएवकए । १०६इग्मिपुराणमंगहे धवलइयामियकदमयंभुएवउव्यांगा पढमो समुद्दविजयाहिसेयणामो इमो मग्गो ॥ तिहुयण-सयभुराए ममाणिय पदमुयहोभवं णवोहिय-मयं मंध' E२ तेरह जाइवकंडे कुरुकंडेकृणवीमसंधीश्रो, इह जमकित्ति-कारणं पञ्चसुद्धरण-गय-एक्कमर्ग । तहमट्रिट जुज्झयकंडे एवं वाणउदि संघीयो ॥१॥ कइगयस्मुन्वग्यिं पयइत्य अक्विय जाणा ॥| मोमसुयस्स य वारे तइयादियहम्मि फग्गुणे रिक्ग्वे, त जीवति य भुवणे मज्जण-गुण-गण्ड्ग य भावत्था । सिउणासेण य जोए समाणियं जुज्झकंई च ॥ २ ॥ पर-कव्य कुलं वित्तं विडियं । जे ममुखरजि ॥२॥ करिमाई तिमासा एयारसवासरा सयभुम्म, ११. सन्चु सुयंगु णाणु जिण-श्रावउ, वाणवइ-मंधिकरणे बोलीणो इत्तिश्रो कालो ॥ ३ ॥ भवमहंतरि कि पिण् रविउ । दियहाहिवम्सबारे दसमीदियहम्मि मृलणवत्त, गिय जमकित्ति तिलोए पयासि 3, एयारमम्मि चंदे उत्तरकंडं समाढतं ॥ ४ ॥ जिह सयंभु जिणे चि: श्राहामिउ ॥ वरं तेजस्विनो मृत्युन मानपरिखण्डन । इय रिणामचरिए धवलक्यामिय-मयमुएव-उपनि। मृत्युस्तक्षणकं दुःवं मानभंगो दिने दिने ॥५॥ नवण-मभुकाणा ममाणिय दहमय मग्गं ॥ ६ इय रिठ्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभु-कए कविगजधनल- एक्को मयंभुवि नमो तहो पत्ती णाम निहुयण-सयंभू । विनिर्मिते श्री ममवसरणकथनं नाम निन्याणवो संधिः ॥ को वारण ममन्यो पिउभणबहग-एक्कमणी ॥ १॥ काऊण पोमचरियं मुन्वय-चरियं च गुणगणपविय । १११ पत्ता-ततीममहमवग्मिं अमगं गिरहनि माणसे सुच्छ । हरिवंम-मोहहरणे सरस्सई सुढिय-देह ब्व ॥ छ । ननिय पक्वम्मामं जकित्ति-विहामय-मरीरे ॥छ । इय रिट्ठणेमिचरिए धवलहयासिय-सयभुवएव-उबरिए। इय-ग्गिामांगा धवलहयामिय-मयभएव उरिए । १ यह पद्य बम्बईकी प्रतिम यहार नही है। निहुवा-मयभन्दा गमिर्माणब्यागं पंडुर्यातगण ।।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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