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________________ किरण १ महाकवि स्वयंभु और त्रिभुवनस्वयंभ ३०७ तावति य सच्छंदो भमह अवन्भंस-मच्च मायंगो। पउमचरियम चूडामणि ब्च सेसं यं जेण ॥॥ जाव ण सयंभु-वायरण-अंकुसो पडद ॥ ४ ॥ कहरायस्य विजय-सेपियस्य विस्थारियो जसो भव। सच्छद-विया-दाढो छंदालंकार-णहर-दुप्पिच्छो । तिहुयण-सयंभणा पउमचरियसेसेण मिस्सो ॥२॥ वायरण-केसरदो सयंभु-पंचाणणो जयउ ॥ ६॥ तिहुयण-सयंभु-धवलस्स को गुणे। वारिणउ जए तरह । दीहर-समास-णालं सद्द-दलं प्रत्यकेसरग्धविया।' बालेण वि जेण सयंभुकन्वभारो समुढो ॥३॥ बुह-महुयर-पीयरस सयंभु-कव्वुप्पल जयउ ॥ ७ ॥ वायरण दढ-खंधो आगम-अंगोपमाण-वियपत्री। (२) तिहुयण सयंभ धवलो जिणतित्थे वह कन्वभरं ॥५॥ वड्डमारा-मुह-कुहर-विणिगय रामकहाणए पह कमागय । चउमुह-मयंभएवाण वरिणयथं श्रचक्त्रमाणेण। अक्खर-वास-जलोह-मणोहर सुयलंकार-छंद-मच्छोहर। तिहुयण-सयंभु-रइयं पमि-चरियं महरियं ॥५॥ दीह-समास-पवाहावंकिय सक्कय-पायय-पुलिणाल किय। सच्चे वि सुया पंजर-सुय ब्व पढिसक्खराइं सिक्वंति । देमीभासा-उभय-तदुजल कवि-दुक्कर-घण-सद-सिलायन। कइरायस्स सुप्रो सुय ब्व सुइगम्भ-संभूमो ॥६॥ अयबहल-कल्लोलाणिट्टिय प्रामासय-सम-तूह-परिष्ट्रिय। तिहुयण-मयंभ जइ ण इंतु णदणो सिरिसयंभुदेवस्स । एह गमकह-सरि मोहंती गणहर-देवहिं दिछ वहंती। कव्वं कुलं कवित्तं तो परछा को समुद्धरह ॥ ७ ॥ परछई इंदभूइ-प्रायगिए पुणु धम्मेण गुणालंकरिए। जह ण हुउ छंदचूामणिस्स तिहुयण-सयंभु लहुतगाउ । पुरण एवहिं संसाराराणं कित्तिहरेण अगत्तरवाएं। तो पद्धडियाकन्वं मिरिपंचमि को समारेउ ॥ ८॥ पुणु रविसेग्गायरिय-पमा बुद्धिए अवगाहिय कराएं। सबो वि जयो गेरह णिय ताप-विढत-तव्य संताणं । ५ मिणि-जणणि गट संभृग मारुयएव-स्व-अणुगएं। तिहुयण-सयंभुणा पुण गहियं णं सुकहत्त-संताणं ॥३॥ अइत गुपण पईहरगत्ते छिब्बर-णासे पविरल-दंते। तिहुयण-सयंभुमेक्कं मोत्तण मयंभुकन्च मयरहरी। पत्ता-णिम्मल-पुण्ण-पवित्त-कह-किनणु थाढप्पइ। को तरइ गंतुमंत मज्झे णिस्पेस-मीयाणं ॥१०॥ जेण समाणिजंतण्ण थिरकित्ति विढापड ॥२॥ इय चाम पोमचरियं सवंभुएवेण रइय सम्मत्तं । तिहुयश-मयंभुणा तं समाणियं परिसमत्तमिणं ॥१॥ वृहयण मयंभू पई विएणवइ मई सरिसउ अण्णुणन्थि कुकइ मारुय-सुय-सिरिकहराय-तणय-कय-पोमचरिय अवसेसं । वायरणु कयावि ग जागियउ ण उ वित्ति-सुत्त वक्खाणियउ। मंपुष्ण संपुषण बदइयो लहउ संपुण्ण ॥ १४ ॥ पर पच्चाहारहो तत्ति किय उ सधिहे उपरि बुद्धि ठिय। गोइंद-मयण सुयणंत विरइयं ? वदइय-पढमतणयस्य । गउ णिमुगिउ यत्तविहत्तियाउ छविहर समास-पउत्तियाउ वच्छलदाए तिहुयण-मयंभुण। रइयं महप्पयं ॥१५॥ छक्कास्य दम लयार ण सुय वीपोवसग पञ्चय पहुय । बंदइय-णाग सिरिपाल पहुइ-भम्बयण-समूहस्स । या बलाबल धाउणिवाय-गणु णउ लिंगु उणाइच रक्त वयणु थारोगत्त-समिद्धी संति सुहं होउ सम्वस्म।। १६॥ गउ णिमणि उ पचमहायकवु ण उभरह ण लक्वणुछंदुसन्यु मत्तमहामनगंगी तिरयणभूमा सु रामकह-कण्णा। णउ बुझिउ पिंगल पन्थारु णउ भम्मह-दडियलंकारु। तिहुयण-सयंभु जणिया परिणा उ वंदइय मणतयाउ ॥१७॥ ववमाउ तोवि णउ परिहरमि वरि स्यडावुत्तु कब्बु करमि। इय रामायणपुराणं समत्त । अन्तिम अंश सिरि-विजाहर-कडे संधीमो हुति वीसपरिमाणं । तिहुयण-मयंभ व एको कइराय-चकिरणप्परणो। उज्माकंडमि तहा बावीस मुणेह गणणाए ॥ १ अथकेसरुद्धवियं' पाठ पूने की प्रतिम है। मागाने वाली प्रतिम मौ' । २ मागानेवाली प्रतिम 'बुद्धिणियह जाय कहगा पाट है। ५ सागाग्नेवाली प्रतिम , ३ और ४ को कम ८८,६० ३ उक्त प्रतिम 'अण्गुण्णाहि कुकुइ' पाठ है। और ८६वी मंधिक प्रारम्भमं भी दिया है। ६ वागयत्थं ।'
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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