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अनेकान्त
वर्ष५
उल्लेख पाया जाता है। स्थानगंग अध्ययन में छटे अध्यायमें आये हए 'शे पापमिति' और आठवें लिग्बा है:
अध्याय में आये हुआ 'अतोऽन्यत्पापमिति' इन दोनों ___ "नव सम्भावपयत्था पएणत्ते । तं जहा-जीवा वाक्योंमें जो रचना-वैचित्र्य पाया जाता है वह भी अजीवा पुरणं पावो श्रासयो संघरो निजरा बंधो ध्यान देने योग्य है। मोक्खो ।" सूत्र ६६५।
इस प्रकार इस लेग्यमे एक तो पुण्य-पाप विषयक इसका अर्थ स्पष्ट है । धर्मसंग्रह, कर्मग्रन्थ आदिमे ,
सूत्रों में श्रर उनके भाष्यमे जो मतभेद पाया जाता इसी प्रकारके भार भो प्रमाण पाये जाते हैं, जो यहां
है :सका क्या कारण रहा होगा इमपर तथा मात नहीं दिये हैं। यहाँ 'जावा अजावा यदाना पद बहु- तत्सविषयक मान्यता दिगम्बर सम्प्रदायकीही विशेषता वचनान्त पाये जाते हैं। श्रास्रवपदके सम्बन्धमें मत- ।
है, इमपर प्रकाश डाला गया है। आशा है विद्वान तिहामिक दृष्टि से भाप्यम स्थानागका यह पाठक इसमे मचित लाभ उठावगे। अनुकरण ध्यान देने योग्य है । तथा तत्त्वार्थ भाज्यक
हृदयद्रावक दो चित्र
[चित्रलर. क-श्री बा० महावारप्रसाद जैन, बी० ए०]
[१] बिटियासे...
आई है । चुपचाप उपलोकी आगफी भाँति अन्दर ही
अन्दर मुलगना तुमने हो सीग्वा है ! जीवन प्रार बिटिया ! नीचको र म्लानमुख किये क्यों
मृत्युक प्रश्रपर भी तुम अोठ नहीं हिला सकती । उफ ! बैठी हो ?
कितनो विवशता है तुम्हारी ! रह रहकर गर्म श्वांमसे तुम्हारे नथुने फूल उटते
"बाबुल हम ता ग्वू टंकी गइयाँ, हैं ! बिना कंघो किये बाल बार बार तुम्हारा आँखा
जिधर हाका हक जाय रे! सुन बाबुल मोरे।" पर आ रहे हैं ! बर्तन माँजकर अभी तुमने अपने
उसदिन तुम अपनहींम गुनगुना रही थी । ठीक हाथ भी नही धोये?
है परन्तु गाय रस्मी तुड़ाकर भागनकी चेष्टा तो अरे ! तुम तो रोने लगी !!
करती है। किन्तु कितनी निश्चेष्ट हो तुम! __ क्या मेरे इस सीधे-साद प्रश्रमें कोई शल गड़ा जानता है कि आज इस प्रकार अकेले कमरमें था, जिसने तुम्हारे कमल हृदयको मन्तिक पीड़ासे लाल-लाल आंखे सुजाये तुम क्यो रही हो ! पिता भर दिया ? "नही, उटकर भाग तो न सकोगी! मरे जीने तुम्हारी माँ का सारा जेवर-नथ और अंगूठी प्रश्नका उत्तर
तफ-बन्धक रख दिय । एक एक करके जेवर देते मैं समझ गया : उत्तर भी तो तुम नहीं दे सकती। समय तुम्हारी माँ चुक्का फाड़कर रो उठी थी बार यही तो तुम्हारी परिस्थितिकी सबसे बड़ी विपमता है। तुम्हारे पिता ने लीट कर कहा था-"यदि यह कम्बख्त "शर्मको बात" ही जो टहरी।
पैदा न हुई होती तो यह दिन काहे को देखना पड़ता! सारी दुनियाफी शर्म मानों तुम्हारे ही हिस्से में संयमकी असीम क्षमता रखते हुए भी तुम यह