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अनेकान्त
[वर्ष ५
and Kathjawar (1874-75) के पृष्ठ १३६ यहाँ चष्टनके प्रपौत्र, जयदामके पौत्र रुद्रदामके पुत्र
आदि पर छपा है। उनका परिचय हाल हीमें श्रीयुत स्वामी रुद्रसिंहके उस लेग्वको भी यहाँ उद्धृत कर देना एच० डी० सांकलियाने अपनी The Archa- उचित समझते हैं जो ठीक इसी लिपिमें लिखा हुआ nology of Gujrat' (Bombay 1941) नामक गुन्ड नामक स्थानसे प्राप्त हुआ है जो अपने रूपमे पुस्तक में कराया है।
पूरा है और जिसमे १०३ वीं वर्षका स्पष्ट उल्लेख हैप्राप्त लेख इस प्रकार है
गुंडका शिलालेख (पं० १)... 'स्तथा मुरगण [1] [क्षत्रा] णां (पं० १) सिद्धं । राज्ञो महक्षत्र [प] स्य स्वामिप्रथ[म]...............
चष्टनप्रपोत्रस्य राज्ञो क्षत्रपस्य स्वामिजयदामपत्रस्य (पं० २) .. ..."चाटनस्य प्र [पी] त्रस्य राज्ञः (पं० २) गज्ञो महक्षत्रपस्य स्वामिरुद्रदामपुत्रस्य क्ष [त्रप] स्य स्वामिजयदामपे [1] त्रस्य राज्ञो गज्ञो क्षत्रपस्य स्वामिरुद्रम हा] . . .. .. ...
(पं०३) सीहस्य वित्रा युत्तर शते १००३ (पं० ३) .....[] शुक्लम्य दिवसे पंचमे ५ वैशाख शुद्ध पंचमिधत्त्यतिथी गे [हि] णि नक्ष इह गिरिनगरे देवासुरनागय [क्षा राक्षसे . ... ....
(५०४)... थ[पुरमिव ...... कवलि [ज्ञा] न (पं० ४) त्र-मुहर्ते भाभीरेण सेनापति बापकस्य सं....... ना जरामरए[] ....... . ... पुत्रेण सेनापतिरुद्रभूतिना ग्रामे रमीअनुवाद
(पं०५) [प] द्रिये वा [पी] [ख] नि [तो] ...... ..तथा सुरगण " क्षत्रियों में प्रथम · ... [बद्ध] । पितश्च सर्वसत्त्वानां हितसुखार्थमिति । .... " चटनके प्रपौत्रके, राजा क्षत्रप स्वामी जयदामके पौत्र, राजा महा ... ... ... ... चैत्र
अनुवाद शुक्लकी पंचमीको ५ यहां गिरिनगरमे देवासुरनाग
सिद्धं । राजा महाक्षत्रप स्वामिचटनके प्रपौत्र, यक्ष-राक्षस - .........
........" पुरके
राजा क्षत्रपस्वामी जयदामके पौत्र,गजामहाक्षत्रपस्वामी समान...........केवलिबान सं .............. रुद्रदामके पुत्र, राजा क्षत्रपस्वामी रुद्रसिंहके वपे एक सौ जरामरण" . . . ... ..... .. .... .. . तीन वैशाख शुद्ध पंचमी तिथिके रोहिणी नक्षत्रके
मुहर्तमे भाभीर सेनापति बापकके पुत्र सेनापति इस लेखकी राजवंशावलि आदिको समझने तथा रुद्रभूतिने ग्राम रसोपद्रियमे बापी खुदवाई और लेखकी गति-मतिका कुछ आभास देनेके लिये हम बंधवाई सब जीवों के हित और सुखके लिये । इति ।