Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 11
________________ प्रस्थान प्रत्येक युग में किसी-न-किसी दिव्य पुरुष का जन्म होता ही है-- जो अपनी महानता से, अपनी दिव्यता से समाज को और संसार को जगमगा देता है । वह अपने युग के गले सड़े और घिसे-पिटे विश्वास, विचार और आचार में क्रान्ति करता है। वह असत्य से तब तक लड़ता रहता है, जब तक उसके तन में प्राण-शक्ति है, मन में तेज है और वचन में ओजस् है । स्व-कल्याण के साथ पर-कल्याण में भी उसकी प्रगाढ निष्ठा, गहरी आस्था एवं अचल श्रद्धा रहती है । महापुरुष वही होता है, जो समाज को विकृति से हटाकर संस्कृति की ओर ले जाता है। उसका गन्तव्य-पथ कितना भी दुर्गम क्यों न हो ? उसमें इतना तीव्र अध्यवसाय होता है कि उसके लिए दुर्गम भी सुगम बन जाता है। रास्ते के शूल भी फल हो जाते हैं। लोग भले ही निन्दा करे या प्रशंसा, उसकी तनिक भी चिन्ता उसे नहीं होती। वह जन-जीवन का अनुसरण नहीं करता, जन-चेतना स्वयं ही उसका अनुकरण करती है । क्योंकि वह जो कुछ सोचता है, जन-कल्याण के लिए। वह कुछ बोलता है, जन-सुख के लिए । वह जो कुछ करता है, जन-मंगल के लिए। उसकी वाणी का एकमात्र यही स्वर मुखरित. होता है - "अपित है मेरा मनुज-काय, सब जन-हिताय सब जन-सुखाय।" युग-पुरुप अपने युग का प्रतिनिधि होता है। उसका जीवन युग की समस्याओं से और युग की परिस्थितियों से प्रभावित होता तो है, परन्तु वह उसमें संसक्त होकर स्थिर नहीं होता है। जब कि सामान्य जन

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