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उपयोगिता को स्पष्ट रूप से व्याख्यायित किया गया है। कुछ दर्शन मोक्ष-प्राप्ति में 'ज्ञान' (आत्मज्ञान, पदार्थज्ञान, आत्म-अनात्मविवेक आदि) को कारण मानते हैं, वे भी चित्तशुद्धि हेतु 'क्रिया' (नित्य अनुष्ठेय धार्मिक क्रिया आदि) की उपयोगिता स्वीकारते हैं।28 वेदान्त, न्यायवैशेषिक, पूर्वमीमांसा आदि दर्शनों ने 'नित्य क्रिया' की मोक्ष में परम्परया उपयोगिता स्वीकार की है। मंडन मिश्र (सुरेश्वराचार्य) आदि प्राचीन वेदान्ती व मीमांसक दार्शनिक 'ज्ञान-कर्मसमुच्चय' (ज्ञान वं कर्म की सहप्रधानता) का समर्थन करते हैं तो आ. शंकर इसका पूर्णतः निराकरण करते हैं। उनके मत में मोक्ष 'क्रियानिष्पाद्य' नहीं है।29 आ. भर्तृप्रपंच आदि भेदाभेदवादी वेदान्ती 'कर्म-ज्ञानसमसमुच्चय' का समर्थन करते हैं।
योगदर्शन में तो ‘क्रियायोग' को मोक्ष-साधक (समाधि-भावना में तथा क्लेशकृशता में सहायक) माना गया है। इस क्रियायोग में तप, स्वाध्याय व ईश्वरप्रणिधान (इष्ट देव-ध्यानादि) को सम्मिलित किया गया है। गीता का निष्काम कर्मयोग प्रसिद्ध है ही, जो फलासक्ति आदि रहित क्रिया की कर्तव्यता का प्रतिपादन करता है।
इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति के साधनों में क्रिया' का निरूपण प्रायः सभी दर्शनों में है। क्षणिकवादी व नैरात्म्यवादी बौद्ध दर्शन भी साधक के लिए 'अष्टांगिक मार्ग' या 'मध्यमप्रतिपदा' के रूप में पंचशील, समाधि व प्रज्ञा- इन विविध आचरणीय क्रियाओं का निरूपण करता है।
इसके अतिरिक्त, ‘क्रिया' को स्वतंत्र पदार्थ के रूप में भी मान्यता प्राप्त हुई है। उदाहरणार्थ- प्रमुखतः न्याय-वैशषिक दर्शन में क्रिया (कर्म) को एक स्वतंत्र पदार्थ के रूप में निरूपित कर इसके विविध भेदों का निर्देश किया गया है और किन-किन मूर्त द्रव्यों में इसका सद्भाव है- इसका भी निरूपण है। इतना ही नहीं, घड़े को पकाये जाने पर घड़े के लाल होने की प्रक्रिया जो होती है, उसको लेकर दो पृथक्-पृथक् सिद्धान्त निरूपित हुए हैं। न्यायदर्शन पिठरपाकवाद का समर्थक है और यह मानता है कि सम्पूर्ण घड़े का पूर्व वर्ण नष्ट होकर पूरे घड़े में ही लाल वर्ण उत्पन्न होता है, जब कि वैशेषिक दर्शन में पीलुपाकवाद का समर्थन हुआ है जिसके अनुसार (पीलु=) परमाणुओं में ही नवीन रूप उत्पन्न होता है और क्रमश: घड़ा नवीन लाल वर्ण प्राप्त करता है।
जो दर्शन द्रव्यों/पदार्थों /तत्त्वों का वर्गीकरण करते हैं, वे यह निरूपण भी करते हैं कि अमुक तत्त्व निष्क्रिय' या सक्रिय है, या कौन-कौन से तत्त्व सक्रिय हैं और कौन
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