Book Title: Agam Suttani Satikam Part 11 Pragnapana
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 41
________________ ३८ प्रज्ञापनाउपाङ्गसूत्रम्-२-१६/-/-/४४० विद्याधरादीनां विकुर्वणाभावा" दिति, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी कार्मणशरीरकायप्रयोगी चकदाचित्सर्वथा न लभ्यते, द्वादशमौहूर्तिकोपपातविरहकालभावात्, आहारकशरीरी आहारकमिश्रशरीरीच कादाचित्क; प्रागेवोक्तः, तत औदारिकमिश्राद्यभावे पदैकादशबहुवचनलक्षण एको भङ्गः, ततऔदरिकमिश्रपदेन एकवचनबहुवचनाभ्यां द्वौ भङ्गौ, एवमेव द्वौ भङ्गौआहारकपदेन द्वौ चाहारकमिश्रपदेन द्वौ करामणफदेनेत्येकैकसंयोगे अष्टौ भङ्गः, द्विकसंयोगे प्रत्येकमेकवचनबहुवचनाभ्यामौदारिकमिश्राहारकपदयोश्चात्वारः, एवमेव औदारिकमिश्राहारकमिश्रपदयोश्चत्वारः औदारिकमिश्रकार्मणयोश्चत्वारः आहारकआहारकमिश्रयोश्चत्वारः आहारककार्मणयोश्चत्वारः आहारकमिश्रकार्मणयोश्चत्वार इति सर्वसङ्ख्यया द्विकसंयोगे चतुर्विंशतिभङ्गाः, त्रिकसंयोगे औदारिकमिश्राहारकाराकमिश्रपदानामेकवचनबहुवचनाभ्यामष्टौ भङ्गाः,अष्टौ औदारिकमिश्राहारककार्मणानामष्टौ औदारिकमिश्राहारकमिश्रकार्मर्णानामष्टावाहारकाहारक- मिश्रकार्मणानामिति सर्वसङ्ख्यया त्रिकसंयोगे द्वात्रिंशइभङ्गाः, औदारिकमिश्राहारकाहारक-मिश्रकार्मणरूपाणांतुचतुर्णा पदानामेकवचनबहुवचनाभ्यांषोडश भङ्गाः, सर्वसङ्कलनया भङ्गानामशीतिरिति । उक्तःप्रयोगः, प्रयोगवशाच्च जीवानामजीवानांचगतिर्भवति, ततोगतिनिरूपणार्थमाह मू. (४४१) कइविहे णं भंते ! गइप्पवाए पन्नते ?, गो० ! पंचविहे गइप्पवाए पं०, तं०-पओगगती १ ततगती२ बंधनछेदनगती ३ उववायगती४ विहायगती ५, से किंतंपओगगती २ पन्नरसविहापं०, तं०-सच्चमनप्पओगगतीएवंजहा पओगो भणितो तहा एसाविभाणितव्वा जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती। जीवाणं भंते! कतिविहा पओगगती पं०!, गो०-पन्नरसविहा पं०, तं०-सच्चमनप्पोगगती जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती, नेरइयाणं भंते ! कइविहा पओगगती पं०?, गो०एक्कारसविहा पन्नत्ता, तं०-सच्चमनप्पओगगती, एवं उवउज्जिऊणजस्स जतिविहातस्स ततिविहा भाणित० जाव क्माणियाणं, जीवाणंभंते! सच्चमनप्पओगगती जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती?, गो०! जीवा सव्वेवि ताव होज्ज सच्चमणप्पओगगतीवि, एवंतंचेवपुव्ववण्णितंभाणितव्वं भंगा तहेव जाव वेमाणियाणं, से तं पओगगती १ । से कंतं ततगती ?, २ जे णं जंगामं वा जाव सन्निवेसंवा संपट्टिते असंपत्ते अंतरापहे वट्टति, सेतं ततगती २ । से किंतं बंधणछेदणगती?, २ जीवो वा सरीराओ सरीरं वा जीवाओ, सें तं बंधनछेदनगती३। से किं कं उववायगती ?, २ तिविहा पं०, तं०-खेत्तोववायगती भवोववयागती नोभवोववायगती, से किं तं खेत्तोववायगती?, २ पंचविहा पं०, तं०--नेरइयखेत्तोववायगती १ तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती २ मणूसखेत्तो०३ देवखेत्तो० ४ सिद्धखेत्तोव०५, से किं तं नेरइयखेत्तोववायगती?, २ सत्तविहा पं०, तं०-रयणप्पभापुढविनेरइयखेत्तोववायगती जाव अधेसत्तमापुढविनेरइयखेत्तोववायगती, से तं नेरइयखेत्तोववायगती १, से किंतंतिरिक्खजोणियखेत्तोववायगतीजाव अधेसत्तमापुढविनेरइयखेत्तोववायगती, सेतं नेरइयखेत्तोववायगती १, से किं तंतिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती?, २ पंचविहा पं०, तं०-एगिंदियतिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती, से Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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