Book Title: Agam Suttani Satikam Part 11 Pragnapana
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 328
________________ [5] भाष्य ण क्रम गाथाप्रमाण ४८३ ( वर्तमान आणे ४५मागमभi Guy भाष्यं क्रम क्रम भाष्य श्लोकप्रमाण क्रम भाष्य भाष्य गाथाप्रमाण | निशीषभाष्य ७५०० आवश्यकभाष्य * बृहत्कल्पभाष्य ७६०० ओघनियुक्तिभाष्य * व्यवहारभाष्य ६४०० ८. पिण्डनियुक्तिभाष्य - ४. | पञ्चकल्पभाष्य । ३१८५ / ९. दशवैकालिकभाष्य * | ५. | जीतकल्पभाष्य | ३१२५ १०. उत्तराध्ययनभाष्य (?) । ७. ३२२ नोध:(१) निशीष , बृहत्कल्प भने व्यवहारभाष्य ना त सङ्घदासगणि डोवान ॥य छे. अभा२॥ संपानमा निशीष भाष्य तेनी चूर्णि साथै मने बृहत्कल्प तथा व्यवहार भाष्य तेनी-तेनी वृत्ति साये समाविष्ट थयु छ. (२) पञ्चकल्पभाष्य ममा आगमसुत्ताणि भाग-३८ मांशात थy. (3) आवश्यकभाष्य भi un प्रभाए। ४८३ सयुमा १८3 ouथा मूळभाष्य ३५ छ अने 3000 अन्य भाष्यनी छे. नो समावेश आवश्यक सूत्रं-सटीकं भi यो छे. [13 विशेषावश्यक भाष्य पूज४ प्रसिध्ध थथु छ ५ ते समय आवश्यकसूत्र- 64रनुं भाष्य नथी भने अध्ययनो अनुसार नी जगमग वृत्ति આદિ પેટા વિવરણો તો પાવર અને ગીત એ બંને ઉપર મળે છે. જેનો અત્રે ઉલ્લેખ અમે કરેલ નથી.] (४) ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति , दशवैकालिकभाष्य नो समावेश तेनी तनी वृत्ति भां. थयो ४ छ. ५९॥ न त विशनो. Get मोने मणेर नथी. [ओघनियुक्ति ઉપર ૩૦૦૦ શ્લોક પ્રમાણ માગનો ઉલ્લેખ પણ જોવા મળેલ છે.] (५) उत्तराध्ययनभाष्यनी ॥ नियुक्तिमा मणी या संमायछ (?) (5) मारीत अंग - उपांग - प्रकीर्णक - चूलिका मे ३५ आगम सूत्रो ७५२नो ऽ માણનો ઉલ્લેખ અમારી જાણમાં આવેલ નથી. કોઈક સ્થાને સાક્ષી પાઠ-આદિ स्व३५ भाष्यगाथा सेवामणे छे. (७) भाष्यकर्ता तरी भुण्य नाम सङ्घदासगणि सेवा मणेर छ. तम४ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण भने सिद्धसेन गणि नो ५४ 64 भणे छ. 32&is भाष्यन। sal અજ્ઞાત જ છે. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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