Book Title: Agam Suttani Satikam Part 11 Pragnapana
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 332
________________ [9] અમારા સંપાદીત ૪૫ આગમોમાં આવતા મૂલ નો અંક તથા તેમાં સમાવિષ્ટ ગાથા आगमसूत्र मूलं गाथा क्रम आगमसूत्र मूलं गाथा क्रम 9. २. ३. ४. आचार सूत्रकृत स्थान समवाय भगवती ज्ञाताधर्मकथा ५. ६. ७. ८. ९. १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. औपपातिक १३. राजप्रश्निय १४. जीवाभिगम उपासक दशा अन्तकृद्दशा अनुत्तरोपपातिक १५. प्रज्ञापना १६. सूर्यप्रज्ञप्ति १७. चन्द्रप्रज्ञप्ति २१८ १८. जम्बूदीपप्रज्ञप्ति ३६५ १९. निरयावलिका २१ ५ २०. कल्पवतंसिका २१. पुष्पिता २२. पुष्पचूलिका २३. वहिदशा ५५२ ८०६ १०१० ३८३ १०८७ २४१ ७३ ६२ १३ ४७ ४७ ७७ ८५ ३९८ ६२२ २१४ Jain Education International ११ ३ ५ १४७ २४. ७२३ २५. १६९ २६. ९३ २७. ११४ २८. ५७ २९. १३ ३०. १२ ३१. ४ ३२. १४ ३३. ३ ३४. ३५. ३६. ९३ ३७. २३१ ३८. १०३ ३९. १०७ ४०. ३० || 3 ४१. ४२. ४३. १ ४४. 9 ४५. | | | १ २ चतुःशरण आतुरप्रत्याख्यान महाप्रत्याख्यानं भक्तपरिज्ञा दशाश्रुतस्कन्ध जीतकल्प महानिशीथ आवश्यक १३१ ४१. ओघनियुक्ति तंदुल वैचारिक संस्तारक गच्छाचार गणिविद्या देवेन्द्रस्तव मरणसमाधि निशीष बृहत्कल्प व्यवहार पिण्डनिर्युक्ति दशवैकालिक उत्तराध्ययन नन्दी अनुयोगद्वार ६३ ६३ ७१ १४२ १४२ १७२ १७२ १६१ १३९ १३३ १३३ १३७ १३७ ८२ ८२ For Private & Personal Use Only ३०७ ३०७ ६६४ ६६४ १४२० २१५ २८५ ११४ ५६ १०३ १०३ . ९२ २१ ११६५ ७१२ ७१२ ५१५ १६४० | ९३ १४१ १५२८ ११६५ ७० ५४० १७३१ १६८ ३५० नोंध :- उत गाथा संख्यानो सभावेश मूलं भां थ ४ भय छे. ते मूल सिवायनी असण गाथा समभवी नहीं. मूल शब्द से सभी सूत्र अने गाथा जने भाटे नो जायेलो संयुक्त અનુક્રમ છે. ગાથા બધાંજ સંપાદનોમાં સામાન્ય અંક ધરાવતી હોવાથી તેનો અલગ અંક આપેલ છે. પણ સૂત્રના વિભાગ દરેક સંપાદકે ભિન્નભિન્ન રીતે કર્યા હોવાથી અમે સૂત્રાંક જુદો પાડતા નથી. www.jainelibrary.org

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