Book Title: Agam Suttani Satikam Part 11 Pragnapana
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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पदं-२९, उद्देशकः, द्वारं
२३७ बेइंदिगाणं पुच्छा, गो०! दुविधेउवओगे पं०, तं०-सागारोवओगे अनागारोवओगे य, बेइंदियाणं भंते! सागारोवओगे कतिविधे पं०?, गो० ! चउबिहे पं०, तं०-आभिनि० सुय० मतिअन्नाण० सुतअन्नाणसा०, बेइंदियाणं अना० कइ० पं०?, गो० ! एगे अचक्खुदंसण अनागारोवओगे, एवं तेइंदियाणवि, चउरिदियाणवि एवं चेव, नवरं अनागारोवओगे दुविधे पं०२०--चक्खुदंसणअना० अचक्खुदंसणअना०पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणंजहा नेरइयाणं मणुस्साणं जहा ओहिए उवओगे भणितं तहेव भाणितव्वं । वाणंतरजोतिसियवेमाणियाणं भंते जहा नेरइयाणं।
जीवाणं भंते ! किं सागारोवउत्ता अनागारोवउत्ता?, गो० ! सागारोवउत्तावि अना०, से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ जीवा सागारोवउत्तावि अना०?, गो०! जे णं जीवा आभिनिबोहियनाण० सुय० ओहि० मन० केवल० मइअनाणसुयअन्नाणविभंगनाणोवउत्तातेणंजीवा सागारोवउत्ता, जेणंजीवा चक्खुदंसणअचक्खुदंसणओहिदसणकेवलदसणोवउत्तातेणंजीवा अनागारोवउत्ता, से तेणटेणं गो० ! एवं वुच्चइ-जीवा सागारोवउत्तावि अनागारो०,
नेरइयाणंभंते! किं सागारोवउत्ताअना०?, गो०! नेरइयासागारोवउत्ताविअनागा०, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति ?, गो० ! जे णं नेरइया आभिनिबोहियनाण सुय० ओहि० मतिअन्नाणसुय० विभंगनाणोवउत्ताते णं नेरइया सागा०, जे णं नेरइया चक्खुदसणअच
खुदंसणओहि० तेणं नेरइया अनागारोवउत्ता, से तेणडेणं गो०! एवं वु० जाव सागारोवउत्तावि अनागारोवउत्तावि, एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविकाइयाणं पुच्छा, गो०! तहेव जावजेणं पुढवि० ! मतिअन्नाणसुयअन्नाणोवउत्ता तेणं पुढवि० सागरोव०, जेणं पुढवि० अचक्खुदंसणोवउत्ता ते णं पुढ० अनागारोवउत्ता, से तेणटेणं गो० ! एवं वु० जाव वणप्फइकाइया।
बेइंदियाणं भंते! अट्ठसहिया तहेव पुच्छा, गो० ! जावजेणं बेइंदिया आभिनिबोहिय० सुयनाणमतिअन्नाणसुयअन्नाणोवउत्तातेणंबेइंदिया सागारोवउत्ता, जेणंबेइंदियाअचक्खुदंसणोवउत्ता तेणं अनागा०, से तेणटेणं, गो०! एवं वु० एवं जाव चउरिदिया, नवरं चक्खुदंसणं अब्भहियं चउरिदियाणंति, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया, मणूसा जहा जीवा, वामंतरजोतिसियवेमाणियाजहानेरइया (पन्नवणाएभगवईएएगोणतीसइमंउवओगपयंसमत्त)
वृ. 'कइविहेणंभंते! उवओगेपं०' कतिविधः-कतिप्रकारः, सूत्रे एकारो मागधभाषालक्षणवशात्, णमिति वाक्यालङ्कृती, भदन्त!-परमकल्याणयोगिन् ! उपयोगः' उपयोजनमुपयोगः भावेध, यद्वा उपयुज्यते-वस्तुपरिच्छेदंप्रपति व्यापार्यतेजीवोऽनेनेत्युपयोगः- 'पुंनाम्नि घ' इति करणेघप्रत्तययोबोधरूपोजीवस्य तत्त्वभूतो व्यापारः प्रज्ञप्तः-प्रतिपादितः?, भगवानाह'गोयमे'त्यादि, आकारः-प्रतिनियतोऽर्थग्रहणपरिणामः,
_ 'आगारो अविसेसो' इति वचनात्, सह आकारेण वर्तत इति साकारःस चासावुपयोगश्च साकारोपयोगः, किमुक्तं भवति?-सचेतने अचेतने वा वस्तुनि उपयुञ्जान आत्मायदासपर्यायमेव वस्त परिच्छिनत्ति तदास उपयोगः साकार उच्यते इति, सच कालतः छद्मस्थानमन्तर्मुहर्त कालं केवलिनामेकसामयिकः, तथा न विद्यते यथोक्तरूप आकारो यत्र सोऽनाकारः सचासावुपयोगश्च अनाकारोपयोगः, यस्तुवस्तुनः सामान्यरूपतया परिच्छेदः सोऽनाकारोपयोगः स्कन्धावारोपयोग
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