________________ 158 .. 162 द्वितीय उद्देशक धान्ययुक्त उपाश्रय में रहने के विधि-निषेध सुरायुक्त मकान में रहने का विधि-निषेध व प्रायश्चित्त जलयुक्त उपाश्रय में रहने का विधि-निषेध और प्रायश्चित्त अग्नि या दीपक युक्त उपाश्रय में रहने के विधि-निषेध और प्रायश्चित्त खाद्यपदार्थयुक्त मकान में रहने के विधि-निषेध और प्रायश्चित्त साधु-साध्वी के धर्मशाला आदि में ठहरने का विधि-निषेध अनेक स्वामियों वाले मकान की आज्ञा लेने के विधि-निषेध संसृष्ट-असंसृष्ट शय्यातर पिंडग्रहण के विधि-निषेध शय्यातर के घर आये या भेजे गये आहार के ग्रहण का विधि-निषेध शय्यातर के अंशयुक्त आहार-ग्रहण का विधि-निषेध शय्यातर के पूज्यजनों को दिये गये आहार के ग्रहण करने का विधि-निषेध निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के लिये कल्पनीयवस्त्र निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के लिये कल्पनीय रजोहरण दूसरे उद्देशक का सारांश 165 168 170 171 174 176 178 179 तृतीय उद्देशक निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी को परस्पर उपाश्रय में खडे रहने प्रादि का निषेध साधु-साध्वी द्वारा वस्त्र ग्रहण करने के विधि-निषेध साधु-साध्वी को अवग्रहानन्तक और अवग्रहपट्टक धारण करने के विधि-निषेध साध्वी को अपनी निश्रा से वस्त्र ग्रहण करने का निषेध दीक्षा के समय ग्रहण करने योग्य उपधि का विधान प्रथम द्वितीय समवसरण में वस्त्र ग्रहण करने का विधि-निषेध यथारत्नाधिक वस्त्र ग्रहण का विधान यथारत्नाधिक शय्या-संस्तारक ग्रहण का विधान यथारत्नाधिक कृतिकर्म करने का विधान गृहस्थ के घर में ठहरने आदि का निषेध गहस्थ के घर में मर्यादित वार्ता का विधान गृहस्थ के घर में मर्यादित धर्मकथा का विधान गृहस्थ का शय्या-संस्तारक लौटाने का विधान शय्यातर का शय्या-संस्तारक व्यवस्थित करके लौटाने का विधान खोये हुए शय्या-संस्तारक के अन्वेषण का विधान प्रागन्तुक श्रमणों को पूर्वाज्ञा में रहने का विधान स्वामी-रहित घर की पूर्वाज्ञा एवं पुनः आज्ञा का विधान पूर्वाज्ञा से मार्ग प्रादि में ठहरने का विधान सेना के समीपवर्ती क्षेत्र में गोचरी जाने का विधान एवं रात रहने का प्रायश्चित्त MMMMMMM Mus SI 0018 191 192 193 [76 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org