________________ तीसरा उद्देशक] [189 रिक के अतिरिक्त अन्य किसी गृहस्थ के घर से वापस सौंपने को कहकर लाता है। वह शय्या-संस्तारक उस गृहस्थ को सौंपे विना ग्रामान्तर जाना साधु या साध्वी के लिए उचित नहीं है / यदि वह विना लौटाए जाता है तो प्रायश्चित्त का पात्र होता है। विना सौंपे ही विहार कर जाने पर साधु की अप्रतीति एवं निन्दा होती है, जिससे पुनः वहां शय्या-संस्तारक मिलना दुर्लभ होता है। यहां शय्या-संस्तारक पद उपलक्षण रूप है। अतः वापस सौंपने को कहकर जो भी वस्तु गृहस्थ के घर से साधु या साध्वी लावें, उसे वापस सौंप करके ही अन्यत्र विहार करना चाहिए। शय्यातर का शय्या-संस्तारक व्यवस्थित करके लौटाने का विधान 25. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा-सागारियसंतियं सेज्जासंथारयं आयाए अविकरणं कटु संपन्वइत्तए। 26. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा-सागारियसंतियं सेज्जासंथारयं आयाए विकरणं कटु संपव्वइत्तए। 25. सागारिक का शय्या-संस्तारक जो ग्रहण किया गया है, उसे यथावस्थित किये विना ग्रामान्तर गमन करना निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को नहीं कल्पता है। 26. सागारिक का शय्या-संस्तारक जो ग्रहण किया है, उसे व्यवस्थित करके ग्रामान्तर गमन करना निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को कल्पता है / विवेचन-शय्यातर के शय्या-संस्तारक जहां पर जिस प्रकार से थे, उन्हें उसी प्रकार से करके सौंपने को "विकरण" कहते हैं। __ यदि उसी स्थान पर न रखे और उसी प्रकार से व्यवस्थित करके न सौंपे तो इसे "अविकरण" कहते हैं। इस सूत्र द्वारा यह निर्देश किया गया है कि शय्यातर के शय्या-संस्तारक जहां जैसे रखे हुए थे, जाते समय उन्हें उसी स्थान पर और उसी प्रकार से व्यवस्थित करके ग्रामान्तर के लिए विहार करना चाहिए / अन्यथा वे साधु-साध्वी प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं / प्राचा. श्रु. 2, अ. 2, उ. 3 में शय्या-संस्तारक लौटाने की विधि बताई है। उसका तात्पर्य यह है कि उनकी अच्छी तरह ऊपर नीचे प्रतिलेखन कर लेना चाहिए। आवश्यक हो तो खंखेरना या धूप में प्रातापित करना चाहिए। इस प्रकार सर्वथा जीवरहित होने पर लौटाना चाहिए। पाट आदि उपयोग लेने से मलीन हो जाएँ तो उन्हें धोकर एवं पोंछकर साफ करके देना द वे कुछ टूट-फट जाएँ या खराब हो जाएँ तो उन्हें विवेकपूर्वक सूचना करते हए लौटाना चाहिए। भाष्य में बताया गया है--जिस बांस की कंबिया आदि को बांधा हो अथवा बंधे हुए को खोला हो तो उन्हें पुनः पूर्व अवस्था में करके लौटाना चाहिए। ___इन सभी विधानों का आशय यह है कि व्यवस्थित लौटाने से साधु-साध्वी की प्रतीति रहती है एवं शय्या-संस्तारक की सुलभता रहती है तथा तीसरे महाव्रत का शुद्ध रूप से पालन होता है। चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org