________________ चौथा उद्देशक] [225 जंघार्ध प्रमाण बहता हो तो तथा उसके जल में एक पैर रखते हुए और एक पैर जल से ऊपर करते हुए चलना सम्भव हो तो साधु अन्य निर्दोष मार्ग के निकट न होने पर जा सकता है। यतना से नदी पार करने पर कायोत्सर्ग का प्रायश्चित्त करना आवश्यक है एवं जीव-विराधना के कारण निशीथ उ. 12 के अनुसार चातुर्मासिक प्रायश्चित्त भी पाता है। घास से ढकी हुई छत वाले उपाश्रय में रहने के विधि-निषेध 33. से तणेसुवा, तणपुजेसु धा, पलालेसु वा, पलालपुजेसुवा, अप्पंडेसु जाव मक्कडासंताणएसु, अहे सवणमायायाए नो कप्पइ निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा, तहप्पगारे उवस्सए हेमंत-गिम्हासु वत्थए / 34. से तणेसु वा तणपुजेसु बा, जाव मक्कडासंताणएसु उप्पि सवणमायाए, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए हेमंत गिम्हासु वत्थए / ___35. से तणेसु वा, तणपुजेसु वा जाव मक्कडासंताणएसु अहे रयणिमुक्कमउडेसु, नो कप्पड़ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए वासावासं वत्थए / 36. से तणेसु वा, तणपुजेसु वा जाव मक्कडासंताणएसु उप्पिं रयणिमुक्कमउडेसु, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए वासावासं वत्थए। 33. जो उपाश्रय तृण तृणपुज पराल या परालपुज से बना हो और वह अंडे यावत् मकड़ी के जालों से रहित हो तथा उस उपाश्रय के छत की ऊंचाई कानों से नीची हो तो ऐसे उपाश्रय में निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को हेमन्त व ग्रीष्म ऋतु में रहना नहीं कल्पता है / 34. जो उपाश्रय तृण या तृणपुंज से बना हो यावत् मकड़ी के जालों से रहित हो तथा उस उपाश्रय की छत की ऊंचाई कानों से ऊंची हो तो ऐसे उपाश्रय में निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को हेमन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में रहना कल्पता है। 35. जो उपाश्रय तृण या तृणपुंज से बना हो यावत् मकड़ी के जालों से रहित हो किन्तु उपाश्रय के छत की ऊंचाई खड़े व्यक्ति के सिर से ऊपर उठे सीधे दोनों हाथों जितनी ऊंचाई से नीची हो तो ऐसे उपाश्रय में निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थियों को वर्षावास में रहना नहीं कल्पता है / 36. जो उपाश्रय तृण या तृणपुज से बना हो यावत् मकड़ी के जालों से रहित हो और उस उपाश्रय के छत की ऊंचाई खड़े व्यक्ति के सिर से ऊपर उठे सीधे दोनों हाथों जितनी ऊंचाई से अधिक हो, ऐसे उपाश्रय में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को वर्षावास में रहना कल्पता है / विवेचन--उपर्युक्त चार सूत्रों में से प्रथम सूत्र में यह बतलाया गया है कि जिस उपाश्रय की छत सूखे घास या सूखे धान्य आदि के पलाल भूसा-फूस आदि से बनी हो, जिसमें अण्डे न हों, त्रस जीव भी न हों, हरित अंकुर भी न हों, अोसबिन्दु भी न हों और कीड़ी-मकोड़ी के घर भी न हों, लीलन-फूलन या कीचड़ आदि भी न हो और मकड़ी का जाला आदि भी न हो। किन्तु उस छत की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org